॥ दादूराम सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"*
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
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*काल का अंग २५*
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दादू सबको पाहुणा, दिवस चार संसार ।
औसर औसर सब चले, हम भी इहै विचार ॥२५॥
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! इस संसार में सब कोई, राजा से लेकर रंक तक, चार दिन के लिये मेहमान के समान आये हैं । समय - समय पर जैसे मेहमान चले जाते हैं, वैसे ही यह प्राणधारी जीव जा रहे हैं ॥२५॥
दिवस दोय का पाहुणा, जीव जगत में लोइ ।
कबहूँ देख्यो है कहुँ, चिर जीवित कलि कोइ ॥
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*भयमय पंथ बिखमता*
सबको बैठे पंथ सिर, रहे बटाऊ होइ ।
जे आये ते जाहिंगे, इस मारग सब कोइ ॥२६॥
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! इस संसार में मनुष्य से लेकर देव पर्यन्त, सभी लोग बटाऊ की तरह मार्ग पर बैठे हैं । समय - समय के अनुसार सभी प्रस्थान करते जा रहे हैं । जो इस संसार में पैदा हुए हैं, वे सभी इस मार्ग से निश्चय जायेंगे । कोई संसार में नहीं रहेगा । सबको काल भक्षण कर लेगा ॥२६॥
यथा हि पथिकः कश्चित् छायामाश्रित्य तिष्ठति ।
विश्रम्य च पुनर्गच्छेत् तद्वत् भूतसमागमः ॥
(क्रमशः)
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