गुरुवार, 20 फ़रवरी 2014

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卐 सत्यराम सा 卐
एकै अक्षर पीव का, सोई सत्य करि जाण । 
राम नाम सतगुरु कह्या, दादू सो परवाण ॥ 
पहली श्रवण द्वितीय रसना, तृतीय हिरदै गाइ । 
चतुर्दशी चेतन भया, तब रोम रोम ल्यौ लाइ ॥ 
दादू नीका नांव है, तीन लोक तत सार । 
रात दिवस रटबो करो, रे मन इहै विचार ॥ 
दादू नीका नांव है, हरि हिरदै न बिसारि ।
मूरति मन मांहैं बसै, सांसैं सांस संभारि ॥ 
सांसैं सांस संभालतां, इक दिन मिलि है आइ । 
सुमिरण पैंडा सहज का, सतगुरु दिया बताइ ॥ 
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साभार : Bhakti Samvaad - भक्ति संवाद - Devotional Discussion 
संकट और विपत्ति सबके जीवन में आती हैं.. पर मुझे नामानुरागी भक्तों से कुछ कहना है... मेरी बात क्या, बाबा तुलसी की बात है जिसे जैसा सुमीत ने समझा वो आपके सामने रख रहा है... 
नामानुरागी भक्तों आप दो काम करो- एक की जीभ से ‘राम’ नाम जपो (राम नाम जपु राम नाम रटु राम नाम रमु जिहा) और मन से ‘हठ-योगी’ बन जाओ (राम नाम नव नेह मेह को मन हठी होहि पपीहा).. हठ करलो कि कुछ भी हो ‘राम’ नाम नहीं छोड़ना है और ‘राम’ नाम को ही एकमात्र साधन मानो जैसे पपीहा नदी, तालाब, सागर आदि सभी का पानी छोड़ स्वाति नक्षत्र में गिरने वाली बूंद की ही आशा करता है 
(सब साधन फल कूप सरित सर सागर सलिल निरासा, 
राम नाम रति स्वाति सुधा सुभ सीकर प्रेम पियासा ).. 
एक बात यहाँ देखो कि मन ‘का’ लगना नहीं है मन ‘को’ लगाना है... जीभ से नाम जपना है और मन को हठ करके लगाना है.. अब जो उस पपीहे के साथ होता है वो आपके साथ भी हो सकता है.. स्वाति नक्षत्र की बूंद मिलने से पहले खूब तूफ़ान आता है, बादल भयंकर गर्जना करते हैं, आकाश से ओले गिरते हैं (गरजि तरजि पाषण बरसि पवि).. ऐसे ही विपत्ति आती है और वो भी भयानक रूप में.. मगर हमें करना वो है जो पपीहा करता है ( अधिक अधिक अनुराग उमंग उर पर परमित पहिचाने ).. पपीहा इन सबसे बहुत खुश होता है कि अब वर्षा होने वाली है, अब पिया से मिलन होने वाला है, ये सब उसी की तो निशानी है.. ऐसे ही आप भी खुश हो जाओ कि नाम सिद्ध होने वाला है.. ये बिलकुल पक्की बात है.. 
अगर घोर विपदा है तो जबरदस्ती नाम जपो.. मन नहीं लग रहा है न लगे.. मन को लगाने से मतलब है कि जीभ से नाम नहीं छूटे.. मन नहीं लग रहा फिर भी नाम जपते रहो.. जो नाम जपता है वो बड़भागी है.. है है है.. दुर्भाग्य उसका हो नहीं सकता.. ‘राम नाम गति राम नाम मति राम नाम अनुरागी, ह्वै गए हैं जे होवेंगे त्रिभुवन गनियत बड़भागी’.. इसलिए अगर अपना हित चाहते हो तो अब आराम करना छोड़ दो और ‘नित नेम’ को निरन्तर कर दो.. नित-नेम मतलब रोज़ का नियम कि अमुक संख्या में रोज़ नाम जप करना है.. रोज़ को हर क्षण में बदल दो.. बिना समय गवाए हर क्षण नाम जाप करो (तुलसी हित अपनो अपनी दिसि निरुपधि नेम निबाहें)... 
~ डॉ. सुमीत

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