सोमवार, 23 जून 2014

= १९८ =

#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
झूठा झिलमिल मृग जल, पाणी कर लीया । 
दादू जग प्यासा मरै, पसु प्राणी पीया ॥ 
छलावा छल जायगा, सपना बाजी सोइ । 
दादू देख न भूलिये, यहु निज रूप न होइ ॥ 
सपने सब कुछ देखिये, जागे तो कुछ नांहि । 
ऐसा यहु संसार है, समझ देखि मन मॉंहि ॥ 
दादू ज्यों कुछ सपने देखिये, तैसा यहु संसार । 
ऐसा आपा जानिये, फूल्यो कहा गँवार ॥ 
दादू जतन जतन करि राखिये, दिढ़ गहि आतम मूल । 
दूजा दृष्टि न देखिये, सब ही सैंबल फूल ॥ 
-------------------------------------------- 
साभार : बिष्णु देव चंद्रवंशी ~ 

संसारियों से सुख प्राप्ति की इच्छा करना भूल है। भला जो स्वयं दुखी है वह दूसरे को सुखी क्या बनायेगा ? संसार में जो सुख दिखता है वह सब सापेक्ष सुख है। किसी से कोई किसी अंश में सुखी है तो कोई अन्य किसी अंश में।किसी से सुख की याचना करनी ही है तो ऐसी जगह के याचक बनो, जहाँ से सर्व सुख प्राप्त हो सके। स्मरण रखो कि जो परमात्मा की तरफ झुका है वही संसार में सुख - शान्ति प्राप्त कर सकता है, दूसरा नहीं। संसार में सुख ढूंढ़ना ऐसा है जैसा कि प्यास बुझाने के लिए ओस की बूँदों का संग्रह करना। 
_________ श्री कृष्ण हरी !!

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें