#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
.
*सवैया ग्रन्थ(सुन्दर विलास)*
साभार ~ @महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य - श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व
राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
.
*२. उपदेश चितावनी को अंग*
.
*जग मग पग तजि सजि भजि रांम नांम,*
*कांम कौ न तन मन घेर घेर मारिये ॥*
*झूंठ मूंठ हठ त्यागि जागि भागि सुनि पुनि,*
*गुनि ग्यांन आंन आंन वारि वारि डारिये ॥*
*गहि ताहि जाहि शेष ईश सीस सुर नर,*
*और बात हेत तात फेरि फेरि ज़रिये ॥*
*सुन्दर दरद खोइ धोइ धोइ बार बार,*
*साध संग रंग अंग हेरि हेरि धारिये ॥३०॥*
*इस से मुक्ति एकमात्र उपाय है : सत्संग* : तूँ इस मिथ्या संसारी मार्ग पर चलाना त्याग दे । तथा प्रत्येक विधि से तैय्यार होकर प्रभुस्मरण में अपना मन लगा ।
गुणी जनों से तत्वज्ञान का उपदेश ग्रहण कर अन्य सांसारिक मिथ्या बातों से दूर होता चल ।
तूँ भी उस का आश्रय ग्रहण कर, जिस का आश्रय शेषनाग, शंकर तथा अन्य बड़े बड़े देवता एवं श्रेष्ठ पुरुषों ने लिया है ।
हे तात ! अन्य सांसारिक बातों से, जो आरम्भ में सुनने में हितकर लगती है, उनसे, निरन्तर दूर रह ।
*श्री सुन्दरदास जी* कहते हैं - जिन के धारण करने से सर्वविध जगद्दुःख निराकृत हो जाते हैं, सतसंग द्वारा ऐसे गुणों को ही खोजकर अपने मन में धारण कर ॥३०॥
(क्रमशः)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें