#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
कोटि बर्ष लौं राखिये, बंसा चन्दन पास ।
दादू गुण लिये रहै, कदे न लागै बास ॥
कोटि वर्ष लौं राखिये, पत्थर पानी मांहि ।
दादू आडा अंग है, भीतर भेदै नांहि ॥
कोटि वर्ष लौं राखिये, लोहा पारस संग ।
दादू रोम का अन्तरा, पलटै नांही अंग ॥
कोटि वर्ष लौं राखिये, जीव ब्रह्म संग दोइ ।
दादू मांहीं वासना, कदे न मेला होइ ॥
--------------------------------------
साभार : Gita Press, Gorakhpur ~
वास्तव में प्रेम के आस्पद तो एक भगवान् ही है | महात्माओं में प्रेम की अपेक्षा श्रद्धा आवश्यक है | ईश्वर में प्रेम-श्रद्धा दोनों की आवश्यकता है; क्योंकि ईश्वर का स्वरुप अलौकिक, दिव्य, चेतन हैं; महात्माओं का शरीर जड है, भौतिक है | ईश्वर के स्वरुप में तो प्रेम होने और उसके दर्शन होने से कल्याण हो जाता है, पर महात्मा के शरीरमात्र में प्रेम होनेसे मुक्ति नहीं हो सकती | महात्मा में श्रद्धा होनी चाहिए | श्रद्धा का रूप क्या है ? महात्मा जो कहें उसका पालन करे, वही श्रद्धा है |....असली महात्मा लोग सेवा-पूजा नहीं कराते हैं | वे आराम तथा मान-बड़ाई से दूर रहते हैं |
.
भगवान् के तो स्वरुप, लीला, धाम,नाम, गुण किसी में भी प्रेम होने से उद्धार हो जाता है, अतः भगवान् प्रेम करने के योग्य हैं | भगवान् के सिवा संसार, शरीर, स्त्री, पुत्र, धन, घर, मान, बड़ाई आदि में जो आसक्ति है, वही खतरे की चीज है | शास्त्र में, परलोक में, महात्मा में, परमात्मा में सबमें श्रद्धा करनी चाहिए | श्रद्धा के सब पात्र हैं, पर प्रेम करने योग्य तो केवल परमात्मा ही हैं | संसार के सब प्राणियों से उनके हित के लिए जो निष्काम प्रेम है, वह भगवान् में ही है |
.
महात्मा के पास अगर पचास वर्ष रहें और उनकी आज्ञा का पालन न करें तो कल्याण नहीं हो सकता | उनका अनुकरण और उनकी आज्ञा का पालन दोनों कल्याणकारी है |.......अभिप्राय यह है कि महात्मा पुरुष के द्वारा कहे वचनों को सुनकर जो उनके अनुसार साधन करते हैं, पालन करते हैं, वे दत्तचित्त, श्रुतिपरायण पुरुष संसार-सागर को तर जाते हैं |....सुनने के परायण होना क्या है?....महात्मा जो बताएं, उसे सुनने में मन लगा दे, फिर उसे समझे और तदनुसार आचरण करे |
- Jaydayalji Goyandka - Sethji
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें