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*#श्रीदादूदयालवाणी०आत्मदर्शन*
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
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*सेवक की रक्षा करै, सेवक की प्रतिपाल ।*
*सेवग की वाहर चढै, दादू दीन दयाल ॥३६॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! समर्थ परमेश्वर ! अपने अनन्य भक्तों की सहायता करने को तत्पर रहते हैं और उनकी सब प्रकार प्रतिपालना करते हैं । अपने सेवकों की मदद करते हैं । ऐसे वे दीन दयालु परमेश्वर हैं ॥३६॥
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ओला पड़ते बालिका, पढी साखी कर प्रीत ।
खेत बच्यो सेवक बच्यो, कर सांची प्रतीत ॥
दृष्टान्त ~ जंगल में एक खेत की रखवाली करने को एक लड़की बैठी थी । एक संत परचै सिद्ध उधर आये । लड़की ने संत को नमस्कार किया और बोली ~ महाराज ! बाजरे के सिट्टे - फली का भोग लगाओ, विराजो । संत बैठ गये । लड़की ने सिट्टे - फली में से दाने निकाल कर संत के सामने रखे ।
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संत ने भोग लगाकर पा लिये और जाते समय उसको यह साखी याद करा गये, और बोले ~ जब कोई दुख आवे तो, इसका पाठ करना । दुःख मिट जावेगा । फिर एक रोज वर्षा के साथ ओले पड़ने लगे । लड़की इस साखी को बोलती जाती है और खेत के चारों ओर चक्कर लगाती है । खेत भी बच गया और लड़की भी ओलों से बच गई । बाकी आसपास के सब खेत ओलों की वर्षा से नष्ट हो गए । रामजी महाराज और संत कृपा का फल सब ने प्रत्यक्ष में देखा ।
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जैमल ह्वै बाहरै चढै, नगर मेड़ते मांहि ।
श्रीधर के संग चोर थे, लूटण दीन्हों नांहि ॥
दृष्टान्त ~ मेड़ता के राजा जैमल जी महाराज, भगवान कृष्ण के भक्त थे । यह तीन घंटा भगवान की पूजा सेवा में रहते थे । इनकी प्रतिज्ञा थी कि उस वक्त कोई आकर मुझे कोई कुछ कहेगा, तो गोली से उड़ा दूंगा । मंडोर का ठाकुर सेना लेकर मेड़ते पर चढ़ाई कर दी । जयमल जी की माता को पता लगा । वह जाकर जयमल जी को बोली ~ आंख मीच कर क्या बैठा है, शत्रु तो नगर पर कब्जा करना चाहते हैं । उठ, नगर की रक्षा कर । जैमल जी बोले ~ मैं जिसका ध्यान करता हूँ, वही रक्षा करेगा । जा, चली जा, तूँ माता है, नहीं तो गोली से उड़ा देता । माता बोली ~ मैं भी देख लूँगी, वह कैसी रक्षा करता है ?
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तब भगवान कृष्ण ने जैमल जी का रूप बनाकर, घोड़े पर सवार होकर, तलवार ली । शत्रुओं से जाकर भारी युद्ध करके विजय प्राप्त कर ली । वहॉं उन शत्रुओं को एक मिल्ट्री का जवान दिखाई दे रहा था । महलों में वापिस आये और सईस को घोड़ा संभलाया । जैमल जी की तरफ जाकर, फिर अंतर्ध्यान हो गये । जैमल जी पूजा से आये और फिर दूसरा घोड़ा लेकर सेना के पास गये ।
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मंडोर का ठाकुर बोला ~ हे जैमल ! आपके उस श्यामसुन्दर सैनिक जवान के मुझे एक दफा दर्शन और करा दे, चाहे फिर तूँ मुझे जान से मार दे । जैमल जी बोले ~ हे ठाकुर ! मेरा कोई सिपाही नहीं था । न मैंने भेजा, वह भगवान कृष्ण थे । तुम्हारे अहोभाग्य हैं, जो तुम्हें दर्शन हो गये । मैं तो उनकी पूजा में बैठा था । मुझे पता नहीं था कि प्रभु मेरे जैसे अभक्त सेवकों की भी रक्षा करते हैं ।
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इसी प्रकार श्रीधर नाम के एक भक्त थे वह उगाही का रुपया लेकर आ रहे थे । रास्ते में चोर साथ हो गये । चोरों ने पूछा कि तुम्हारे साथ कोई ओर भी है । वह बोले ~ धनुषधारी है । जब चोर इसको मारने का विचार करें, तब घोड़े पर धनुष बाण लिये हुए एक पुरुष दिखाई पड़े । इसी प्रकार सारे रास्ते में श्रीधर जी की रक्षा भगवान करते आये । जब नगर में घुसे, तो चोरों का मन भगवान आकर्षित करके, अंतर्ध्यान हो गये ।
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श्रीधर जी जब घर में आ गये, तो फिर पीछे से चोर भी आये और बोले ~ आपके उस सुन्दर राम धनुषधारी सिपाही के एक दफा दर्शन और करा दो । हम चोर थे, आपकी उसने सारे रास्ते रक्षा की है । अब जाता - जाता हमारा मन चुराके ले गया । श्रीधर जी बोले ~ भाई ! मेरा कोई सिपाही नहीं था । तुम्हारे अहोभाग्य हैं, जो भगवान के तुम्हें दर्शन हुए । हे प्रभु ! मैंने आपकी कोई भक्ति नहीं की । इस मिथ्या सम्पत्ति के पीछे आपको कष्ट हुआ । यह विचार कर श्रीधर जी ने सारी सम्पत्ति, जनसमुदाय की सेवा में लगा दी और फिर विरक्त होकर भगवान की अखंड भक्ति करने लगे । और चोर भी चौर्य कर्म छोड़कर सच्चे मानव बन गये ।

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