卐 सत्यराम सा 卐
मति बुद्धि विवेक विचार बिन, माणस पशु समान ।
समझायां समझै नहीं, दादू परम गियान ॥
सहज विचार सुख में रहै, दादू बड़ा विवेक ।
मन इन्द्रिय पसरै नहीं, अंतर राखै एक ॥
मन इन्द्रिय पसरै नहीं, अहनिशि एकै ध्यान ।
पर उपकारी प्राणिया, दादू उत्तम ज्ञान ॥
पहली प्राण विचार कर, पीछे पग दीजे ।
आदि अंत गुण देख कर, दादू कुछ कीजे ॥
पहली प्राण विचार कर, पीछे चलिये साथ ।
आदि अंत गुण देखकर, दादू घाली हाथ ॥
जो मति पीछे ऊपजै, सो मति पहली होइ ।
कबहुं न होवै जीव दुखी, दादू सुखिया सोइ ॥
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