गुरुवार, 3 जुलाई 2014

= १० =


卐 सत्यराम सा 卐
दादू कहै जे तैं किया सो ह्वै रह्या, जे तूं करै सो होइ ।
करण करावण एक तूं, दूजा नांहीं कोइ ॥ 
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साभार : Surender Sharda ~

सुघढ़ संत कबीर दास जी का निवास-स्थान कसाईयों के मौहल्ले के निकट था ! रोजाना वह अपनी आँखों से मूक-बधिर पशुओ पर होने वाले कु-कृत्यो को देखते तो उनका हृदय दहल जाया करता ! सोचते कि इन लोगो का क्या होगा न जाने इन्हे इस अपराध के परिणामस्वरूप परमात्मा कौन सी नीच गति प्रदान करेगा; इत्यादि-२ ? उन्हें समझाने का प्रयत्न भी करते पर सब व्यर्थ; उन कसाईयों के कान पर जूँ भी न रेंगती ! इस प्रकार सोचते-२ स्वयं उनकी साधना बाधित होने लगी ! एकदा जब वह ध्यान-मग्न बैठे थे तो प्रभु प्रेरणा से उनके जहन में अति ही सुंदर विचार प्रस्फुटित हुआ जिसे बाद में उन्होंने लिपिबद्ध भी किया !
ठोक बजा कर कहा करते - 
कबीरा तेरी झोपड़ी गलकटयों के पास; 
करैगा सो भरैगा तू क्यों भयो उदास ! 
इस प्रकार पुनः साधनारत होकर उन्होंने आध्यात्मिक ऊचाइयों को प्राप्त किया !

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