॥ श्री दादूदयालवे नमः॥
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*सवैया ग्रन्थ(सुन्दर विलास)*
साभार ~ @महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य - श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व
राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*४. देहात्म विछोह को अंग*
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*रज अरु बीरज कौ प्रथम संयोग भयौ,*
*चेतना सकति तब कौंन भांति आई है ।*
*कोउ एक कहत बीज मध्य ही कियो प्रवेश,*
*किनहुंक पंच मास पीछै कै सुनाई है ॥*
*देह की बियोग जब देखत ही होई गयौ,*
*तब कोऊ कहौ कहां जाइ कै समाई है ।*
*पण्डित रिषीश्वर तपीश्वर मुनीश्वर ऊ,*
*सुन्दर कहत यह किंनहु न पाई ही ॥९॥*
*देह में चेतनाशक्ति* : जब(स्त्री के) रज एवं(पुरुष के) वीर्य का संयोग हुआ तो इस में चेतना शक्ति किस प्रकार कब, कहाँ से चली आयी ।
यहाँ कोई विद्वान कहता है - बीज के साथ ही उस चेतना शक्ति का देह में प्रवेश हो गया । तथा कोई कहता है - नहीं, उस समय नहीं, अपितु बीजप्रवेश(गर्भधारण) के पाँच मास बाद उसमें चेतना शक्ति आयी है ।
परन्तु उनमें से कोई विद्वान् यह नहीं बता पाता कि इस देह का जब नाश हुआ तो वह चेतना शक्ति यहाँ से निकल कर कहाँ जा कर विलीन हो गयी ।
*श्री सुन्दरदास जी* कहते हैं - साधारण विद्वान् की तो बात क्या, बड़े बड़े ऋषीश्वर, तपस्वीश्वर, एवं मुनीश्वर भी कठोर साधन कर इस तत्व का पार नहीं पा सके ॥९॥
(क्रमशः)
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