सोमवार, 25 अगस्त 2014

*सीकरी प्रसंग आठवें दिन*

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साभार ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*सीकरी प्रसंग आठवें दिन*
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अकबर बादशाह ने दादूजी से कहा - आप बारंबार राम का भजन करने का उपदेश करते हैं, मैंने तीन राम सुने है । १ परशुराम, २ दशरथ पुत्र राम और ३ बलराम । इनमें आप किसका भजन करते हैं और उपदेश देते हैं । कृपा करके कहैं ? यह सुनकर दादूजी ने कहा -
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*जामै मरै सो जीव है, रमता राम न होइ ।*
*जामण मरण तैं रहित है, मेरा साहिब सोइ ॥१५॥*
उठै न बैसै एक रस, जागै सोवै नांहि ।
मरै न जीवै जगतगुरु, सब उपज खपै उस मांहि ॥१६॥
ना वह जामै ना मरै, ना आवै गर्भवास ।
दादू ऊंधे मुख नहीं, नरक कुंड दस मास ॥१७॥
(पी. पह. अंग २०)
तक की साखी कहकर ५४ का पद भी कहा -
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५४. स्वरूप गति हैरान । वर्ण भिन्न ताल
ऐसा राम हमारे आवै, वार पार कोई अन्त न पावै ॥टेक॥
हलका भारी कह्या न जाइ, मोल माप नहीं रह्या समाइ ॥१॥
कीमत लेखा नहीं परिमाण, सब पच हारे साधु सुजाण ॥२॥
आगो पीछो परिमित नांहिं, केते पारिख आवहिं जाहिं ॥३॥
आदि अन्त मधि कहै न कोइ, दादू देखै अचरज होइ ॥४॥
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उक्त निरंजन राम के स्वरूप संबन्धी प्रवचन सुनकर बादशाह अति प्रसन्न हुआ और धन्य धन्य करते हुये बोला - भगवन् ! गतरात्रि को अन्तःपुर की महिलाओं ने आपके दर्शन की तीव्र इच्छा प्रकट की है । अतः आप पधारने की कृपा करें । दादूजी ने स्वीकार कर लिया ।
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बादशाह की आज्ञा से अन्तःपुर की सब मातायें एकत्र हो गई तब दादूजी पधारे और उनको पतिव्रत पालन करने का उपदेश इन साखियों से दिया -
पतिव्रता गृह आपने, करै खसम की सेव ।
ज्यों राखै त्यों ही रहै, आज्ञाकारी टेव ॥३४॥
दादू नीच ऊँच कुल सुन्दरी, सेवा सारी होइ ।
सोई सुहागिन कीजिये, रूप न पीजे धोइ ॥३५॥
दादू जब तन मन सौंप्या राम को, ता सन क्या व्यभिचार ।
सहज शील संतोष सत, प्रेम भक्ति लै सार ॥३६॥
(निष्का, पतिव्रता अंग ८)
की साखियों से दिया
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और ६३ के पद से भी उनको उपदेश दिया । ६३ का पद -
६३. आत्मार्थी भेष । घट ताल
सोई सुहागिनी साच श्रृंगार, तन मन लाइ भजै भर्तार ॥टेक॥
भाव भक्ति प्रेम ल्यौ लावै, नारी सोई सार सुख पावै ॥१॥
सहज संतोंष शील सब आया, तब नारी नाह अमोलक पाया ॥२॥
तन मन जौबन सौंप सब दीन्हा, तब कंत रिझाइ आप वश कीन्हा ॥३॥
दादू बहुरि वियोग न होई, पीव सौं प्रीति सुहागिनी सोई ॥४॥
उक्त उपदेश करके दादूजी अन्तःपुर से लौट आये ।
(क्रमशः)

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