#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
ना वह जामै ना मरै, ना आवै गर्भवास ।
दादू ऊंधे मुख नहीं, नरक कुंड दस मास ॥
कृत्रिम नहीं सो ब्रह्म है, घटै बधै नहिं जाइ ।
पूरण निश्चल एक रस, जगत न नाचे आइ ॥
उपजै विनशै गुण धरै, यहु माया का रूप ।
दादू देखत थिर नहीं, क्षण छांहीं क्षण धूप ॥
जे नांही सो ऊपजै, है सो उपजै नांहि ।
अलख आदि अनादि है, उपजै माया मांहि ॥
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