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*श्री सन्त-गुण-सागरामृत श्री दादूराम कथा अतिपावन गंगा* ~
स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~
संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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*(“विंशति तरंग” ३/४)*
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*बिचूण पधारे गुरुदेव*
संत मिलाप भये सुख सेवक,
स्वामिजु वासर तीन रहे हैं ।
होत विदा गुरु आय बिचूण हिं,
भैरूं सुसेवक भाव लहे हैं ॥
मोहनदास करी गुरु - सेवा,
दोय दिनां लगि संत रहे हैं ।
बागड़ तोल जु पुन्यण ल्यावत,
स्वामिहु अम्बुज पाँव गहे हैं ॥३॥
संतों और सेवकों का मिलाप होने पर सर्वत्र आनन्द छा गया । तीन दिवस विराजकर श्री दादूजी बिचूण ग्राम की ओर पधार गये । वहाँ भैरूं नामक सेवक ने अतीव श्रद्धाभाव से सेवा की । मोहनदास ने भी गुरुसेवा में प्रीति दिखाई । बिचूणग्राम में गुरुदेव दो दिन विराजे । पश्चात् तोलाराम बागड़ उन्हें पुन्यण ग्राम में ले आया । चरणकमल पखाल कर अर्चना की ॥३॥
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*रतनपुरा ग्राम में पधारे*
आसन पे पधराय गुरु तब,
दे परिदक्षिण आरति वारे ।
पाँव पखालि पिये सब तोय जु,
धन्य कहे दिन भाग हमारे ॥
आप अभै गति ताहिं दई शुभ,
रत्नपुरे तब आप पधारे ।
टील लघू जु गुपाल रु छींतर,
सेवक उच्छव की हरि प्यारे ॥४॥
गुरुदेव को आसन पर विराजमान कर प्रदक्षिणा की, दीपथाल से आरती उतारी । फिर सब परिवार ने चरणोदक पीकर अपने को धन्य समझा । तोलाराम बागड़ को अभय गति का वरदान देकर गुरुदेव रत्नपुरा ग्राम में पधारे । वहाँ टीलाजी, लघु गोपाल जी और छीतर सेवक ने अति उत्साह से गुरुदेव का स्वागत किया ॥४॥
(क्रमशः)
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