शुक्रवार, 29 अगस्त 2014

= विं. त. ३/४ =

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*श्री सन्त-गुण-सागरामृत श्री दादूराम कथा अतिपावन गंगा* ~
स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~
संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्‍वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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*(“विंशति तरंग” ३/४)*
*बिचूण पधारे गुरुदेव* 
संत मिलाप भये सुख सेवक, 
स्वामिजु वासर तीन रहे हैं । 
होत विदा गुरु आय बिचूण हिं, 
भैरूं सुसेवक भाव लहे हैं ॥ 
मोहनदास करी गुरु - सेवा, 
दोय दिनां लगि संत रहे हैं । 
बागड़ तोल जु पुन्यण ल्यावत, 
स्वामिहु अम्बुज पाँव गहे हैं ॥३॥ 
संतों और सेवकों का मिलाप होने पर सर्वत्र आनन्द छा गया । तीन दिवस विराजकर श्री दादूजी बिचूण ग्राम की ओर पधार गये । वहाँ भैरूं नामक सेवक ने अतीव श्रद्धाभाव से सेवा की । मोहनदास ने भी गुरुसेवा में प्रीति दिखाई । बिचूणग्राम में गुरुदेव दो दिन विराजे । पश्‍चात् तोलाराम बागड़ उन्हें पुन्यण ग्राम में ले आया । चरणकमल पखाल कर अर्चना की ॥३॥ 
*रतनपुरा ग्राम में पधारे* 
आसन पे पधराय गुरु तब, 
दे परिदक्षिण आरति वारे । 
पाँव पखालि पिये सब तोय जु, 
धन्य कहे दिन भाग हमारे ॥ 
आप अभै गति ताहिं दई शुभ, 
रत्नपुरे तब आप पधारे । 
टील लघू जु गुपाल रु छींतर, 
सेवक उच्छव की हरि प्यारे ॥४॥ 
गुरुदेव को आसन पर विराजमान कर प्रदक्षिणा की, दीपथाल से आरती उतारी । फिर सब परिवार ने चरणोदक पीकर अपने को धन्य समझा । तोलाराम बागड़ को अभय गति का वरदान देकर गुरुदेव रत्नपुरा ग्राम में पधारे । वहाँ टीलाजी, लघु गोपाल जी और छीतर सेवक ने अति उत्साह से गुरुदेव का स्वागत किया ॥४॥ 
(क्रमशः)

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