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सीकरी प्रसंग सप्तम दिन
सातवें दिन बादशाह ने कहा- गत दिन व्यसन सम्बन्धी प्रसंग आपने कहा था, वह तो मेरे समझ मे आ गया है, अब शेष व्यसन संबन्धी प्रसंग कहने की कृपा करें । तब दादूजी ने कहा -
कहबा सुनबा मन खुशी, करबा औरै खेल ।
बातों तिमिर न भाजई, दीवा बाती तेल ॥ ७० ॥
दादू करबे वाले हम नहीं, कहबे को हम शूर ।
कहबा हम थैं निकट है, करबा हम थैं दूर ॥ ७१ ॥
कहे कहे का होत है, कहे न सीझै काम ।
कहे कहे का पाइये, जब लग हृदै न आवै राम ॥ ७२ ॥
( सांच अंक १३)
उक्त साखियों से उपदेश करके कहा- केवल कहने से ही क्या होता है । लाभ तो धारण करने से होता है। यह सुनकर अकबर बादशाह ने कहा- आप आज्ञा दीजिये वही करुंगा । तब दादूजी ने कहा- आप अपने राज्य मे गोवध बन्द कर दो । तब ही गत दिन का उपदेश सार्थक समझा जायगा । अकबर बादशाह ने कहा- अच़्छी बात है, अब गोवध बन्द करने की आज्ञा देता हूँ मेरे राज्य में अब गोवध नहीं होगा । अकबर ने कहा-
खुदा कदम की सौंह मुझ, गोवध होय न देश ।
दादू आप जु पीर हो, मैं तब चरणों पेस ।
दादूजी ने शेष व्यसनों का भी निषैध करके सत्संग समाप्त किया ।
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