रविवार, 24 अगस्त 2014

= ६७ =

#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
दादू राम अगाध है, अकल अगोचर एक । 
दादू राम विलम्बिए, साधू कहैं अनेक ॥ 
दादू एकै अलह राम है, समर्थ सांई सोइ । 
मैदे के पकवान सब, खातां होइ सु होइ ॥ 
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साभार : Indu Mahajan
एक बार कबीरदास जी अपनी मौज में बैठे बुनाई कर रहे थे ! 
साथ-साथ ही प्रभु की महिमा भी गा रहे थे ! 
तभी उनके मुँह से एक दोहा निकला - 
एक राम दशरथ का बेटा एक राम घट-घट में बैठा; 
एक राम का सकल पसारा एक राम सबहूँ ते न्यारा ! 
उनके शिष्यों ने जब यह सुना तो इस दोहे का अनर्थ ही कर डाला; कहने लगे कि चार अलग-अलग राम हैं !
एक राम वे जो दशरथ के बेटे थे ! दूसरे राम वे जो सबके घट में बैठे हैं !तीसरे राम वे जिनका सारे संसार में विस्तार है जो सर्वव्पापी है सृष्टि के कण-कण में विराजमान है ! चौथे राम वे हैं जो सबसे न्यारे हैं ! अब सभी शिष्य इनमे से एक-एक राम को चुनने लगे !
जब कबीर जी तक यह बात पहुंची तो वे हंसने लगे सभी शिष्यों को पास बुलाया और समझाया - अरे नादानों ये राम चार अलग-अलग नहीं हैं; एक ही हैं ! मात्र; सत्ता के अलग अलग गुण हैं !

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