बुधवार, 27 अगस्त 2014

= ७१ =


#daduji
卐 सत्यराम सा 卐 
साधु मिलै तब ऊपजै, हिरदै हरि का भाव । 
दादू संगति साधु की, जब हरि करै पसाव ॥ 
साधु मिलै तब ऊपजै, हिरदै हरि का हेत । 
दादू संगति साधु की, कृपा करै तब देत ॥ 
साधु मिलै तब ऊपजै, प्रेम भक्ति रुचि होइ । 
दादू संगति साधु की, दया कर देवै सोइ ॥ 
साधु मिलै तब ऊपजै, हिरदै हरि की प्यास । 
दादू संगति साधु की, अविगत पुरवै आस ॥ 
साधु मिलै तब हरि मिलै, सब सुख आनन्द मूर । 
दादू संगति साधु की, राम रह्या भरपूर ॥ 
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Mata Rani Bhatiyani Mandir Majisha Mandir Keriya

साध कै संगि अगोचरु मिलै ॥ 
साध कै संगि सदा परफुलै ॥ 
साध कै संगि आवहि बसि पंचा ॥ 
साधसंगि अम्रित रसु भुंचा ॥ 
साधसंगि होइ सभ की रेन ॥ 
साध कै संगि मनोहर बैन ॥ 
साध कै संगि न कतहूं धावै ॥ 
साधसंगि असथिति मनु पावै ॥ 
साध कै संगि माइआ ते भिंन ॥ 
साधसंगि नानक प्रभ सुप्रसंन ॥२॥ 
सरलार्थ : साधू की संगति से वह प्रभु मिल जाता है जो मन-इन्द्रियों की पहुँच से परे है| साधू की संगति द्वारा जीव सदा प्रसन्न रहता है| साधू की संगति करने से काम, क्रोध, लोभ. मोह, अहंकार वश में आ जाते है| साधू की सन्ति से जीव सबकी चरण धूलि बन जाता है| साधु की संगति करनेवाला मधुर वचन बोलता है| साधू की सन्ति करनेवाले के मन की भटकन समाप्त हो जाती है और उसका मन स्थिर हो जाता है| जीव साधु की संगति द्वारा माया से निर्लेप होकर प्रभु की प्रसन्नता प्राप्त कर लेता है| 

Jai shree radhey krishna 

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