🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🌷 *#श्रीदादूवाणी०प्रवचनपद्धति* 🌷
https://www.facebook.com/DADUVANI
साभार ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
.
*सीकरी प्रसंग दशम दिन(१)*
.
दशवें दिन तुलसी ब्राह्मण प्रातःकाल ही दादूजी के पास आया और बोला - आज बादशाह तुम्हारे से अतिरुष्ट है, आप उनकी सेवा करो । इत्यादिक अनेक बातें कहकर दादूजी को डराना चाहा किन्तु दादूजी उसकी बातों से लेश मात्र भी नहीं डरे और -
३९१. समर्थ लीला । तिलवाड़ा
*ऐसो राजा सेऊँ ताहि,*
*और अनेक सब लागे जाहि ॥टेक॥*
*तीन लोक ग्रह धरे रचाइ,*
*चंद सूर दोऊ दीपक लाइ ।*
पवन बुहारे गृह आँगणां, छपन कोटि जल जाके घरां ॥१॥
राते सेवा शंकर देव, ब्रह्म कुलाल न जानै भेव ।
कीरति करणा चारों वेद, नेति नेति न विजाणै भेद ॥२॥
सकल देवपति सेवा करैं, मुनि अनेक एक चित्त धरैं ।
चित्र विचित्र लिखैं दरबार, धर्मराइ ठाढ़े गुण सार ॥३॥
रिधि सिधि दासी आगे रहैं, चार पदारथ जी जी कहैं ।
सकल सिद्ध रहैं ल्यौ लाइ, सब परिपूरण ऐसो राइ ॥४॥
खलक खजीना भरे भंडार, ता घर बरतै सब संसार ।
पूरि दीवान सहज सब दे, सदा निरंजन ऐसो है ॥५॥
नारद गावें गुण गोविन्द, करैं शारदा सब ही छंद ।
नटवर नाचै कला अनेक, आपन देखै चरित अलेख ॥६॥
सकल साध बाजैं नीशान, जै जैकार न मेटै आन ।
मालिनी पुहुप अठारह भार, आपण दाता सिरजनहार ॥७॥
ऐसो राजा सोई आहि, चौदह भुवन में रह्यो समाहि ।
दादू ताकी सेवा करै, जिन यहु रचिले अधर धरै ॥८॥
उसे सुनाकर अपनी निर्भयता का पिरचय उसे दिया ।
.
उक्त पद सुनकर तुलसी ब्राह्मण ने कहा -
यहां ज्ञान जानें नहीं, तुमको देशी मार ।
कै को हजरत शरण लो, नांहिं भागो ढूंढार ॥
तुलसी का उक्त वचन सुनकर दादूजी ने अपनी निष्ठा बताने को -
२५१. झपताल
हरि भजतां किमि भाजिये, भाजे भल नांहीं ।
भाजे भल क्यूँ पाइये, पछतावै मांहीं ॥टेक॥
सूरा सो सहजैं भिड़ै, सार उर झेलै ।
रण रोकै भाजै नहीं, ते बाण न मेलै ॥१॥
सती सत साचा गहै, मरणे न डराई ।
प्राण तजै जग देखतां, पियड़ो उर लाई ॥२॥
प्राण पतंगा यों तजै, वो अंग न मोड़ै ।
जौवन जारै ज्योति सूं, नैना भल जोड़ै ॥३॥
सेवक सो स्वामी भजै, तन मन तजि आसा ।
दादू दर्शन ते लहैं, सुख संगम पासा ॥४॥
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें