गुरुवार, 28 अगस्त 2014

६ . अधीरज उराहनैं को अंग ~ १२


॥ श्री दादूदयालवे नमः॥
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*सवैया ग्रन्थ(सुन्दर विलास)* 
साभार ~ @महंत बजरंगदास शास्त्री जी, 
पूर्व प्राचार्य - श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व 
राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान) 
*६ . अधीरज उराहनैं को अंग*
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*पेट ही कै बसि रंक पेट ही कै बसि राव,*
*पेट ही कै बसि और खांन सुलतांन है ।* 
*पेट ही कै बसि योगी जंगम संन्यासी सेख,* 
*पेट ही कै बसि बनवासी खात पांन है ॥* 
*पेट ही कै बसि रिषि मुनि तपधारी सब,* 
*पेट ही कै बसि सिद्ध साधक सुजांन है ।* 
*सुन्दर कहत नहिं काहू कौ गुमांन रहै,* 
*पेट ही कै बसि प्रभु सकल जिहांन है ॥१२॥*
॥ इति अधीरज उलहानैं कॊ अंग ॥६॥ 
*समस्त संसार पेट के आधीन* : ये राजा और रंक सब अपने पेट के अधीन हैं । बड़े बड़े रईस एवं जमीन्दार भी पेट के ही वश में हैं । 
ये संसार के योगी, जंगम, संन्यासी, शेख आदि सभी साधक पेट के ही कारण वनवास(एकान्तवास) करते हुए वायुभक्षण कर रहे हैं । 
ऋषि, मुनि, तपस्वी, ज्ञानी, सिद्ध, साधक - ये सब भी पेट के ही वश में हैं । 
*श्री सुन्दरदास जी* कहते हैं - हे प्रभो ! यदि आप इन प्राणियों के पेट न लगाते तो किसी को भी वृथाभिमान करने का अवसर न मिलता; क्योंकि इस समय यह समस्त संसार पेट के अधीन होकर ऐसा कर रहा है; अन्यथा न करता ॥१२॥
॥ अधीरज उलहना का अंग संपन्न ॥६॥
(क्रमशः)

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