#daduji
सीकरी प्रसंग एकादश दिन
११ वें दिन बादशाह ने वीरबल को भेजकर सत्संग के लिये दादूजी को बुलवाया । वीरबल ने जाकर प्रार्थना की और कहा- आपने बादशाह को तेजोमय तख़त दिखाकर हिन्दू धर्म की रक्षा की है । दादूजी ने कहा- हमने तो कु़छ नहीं किया था । वह तो संतों का योग क्षेम करने वाले राम की ही लीला थी । वे ही-
देवे लवे सब करे, जिन सिरजे सब लोय ।
दादू बंदा महल में, शोभा करे सब काये ॥ १६ ॥
(साक्षी भूत अं. ३५)
फिर वीरबल ने कहा- पधारिये । दादूजी ने कहा- अब हम वहां जाकर क्या करेंगे ? वहां वे ही वक्ता अधिक जाते हैं, जिनको धनादि की इच़्छा हो । सत्संग की इच़्छा हो तो अब बादशाह को स्वयं ही आना चाहिये । यह कह कर साखी बोली -
रुप राग गुण अणसेर, जहँ मायातहँ जाय ।
विद्या अक्षर पंडिता, तहां रहै घर छाय ॥ २७ ॥
( माया अंग १२)
दादूजी का उक्त वचन सुनकर वीरबल लौट आया और दादूजी का वचन बादशाह को सुना दिया । फिर अकबर बादशाह स्वयं ही दादूजी के पास गया और बोला - मेरी भूल हुई है आप तो क्षमाशील संत हैं । क्षमा ही करेंगे । दादूजी ने कहा-
दादू यह तो दोजख देखिये, काम क्रोध अहंकार ।
रात दिवस जरबो करे, आपा आग्न विकार ।
फिर अकबर ने कहा- आपने हमको महान् चमत्कार दिख दिया है ।
दादूजी ने कहा-
करे कारवे सांइयां, जिन दिया औजूद ।
दादू बंदा बीच में, शोभा को मौजूद ॥
काजी मुल्ला आदि के कहने से तुमको संतों का अनादर नहीं करना चाहिये ।
दादू जब ही साधु सताइये, तब ही ऊँघ पलट ।
आकाश धँसै, धरती खिसै, तीनों लोक गरक ॥ ३ ॥
दादू जिहिं घर निंदा साधु की, सो घर गये समूल ।
तिनकी नींव न पाइये, नांव न ठांव न धूल ॥ ४ ॥
दादू निंदा नाम न लीजिये, स्वप्नै ही जनि होइ ।
ना हम कहैं, न तुम सुनो, हमैं जनि भाषै कोइ ॥ ५ ॥
( निन्दा अंग ३२)
उक्त तीनों साखियां सुनकर अकबर ने कहा- अब आगे ध्यान रखूंगा । अब आप बताइये- १- ईश्वर की जाति क्या है ? २- ईश्वर को प्रिय क्या है ? ३- ईश्वर का शरीर क्या है ? ४- ईश्वर का रंग क्या है ?
दादूजी ने कहा-
दादू इश्क अलह की जाति है, इश्क अलह का अंग ।
इश्क अल्लाह वजूद है, इश्क अलह का रंग ॥
अपने प्रश्नों के उचित उत्तर सुनकर बादशाह अति प्रसन्न हुआ और सोचा- इनकी सेवा अवश्य करनी चाहिये किन्तु ये लेते तो कु़छ भी नहीं है । फिर सोचा- मेरा कुरान पढ़ा हुआ तोता ये ले लें तो उसका रत्न जटित पींजरा इनकी सेवा में जा सकता है । फिर बादशाह ने कहा- मेरा तोता कुरान पढ़ा हुआ है आपको कुरान सुनाय करेगा । उसे आप स्वीकार करें । तब दादूजी ने कहा-
दादू यह तन पींजरा, मांहीं मन सूवा ।
एक नाम अल्लाह का, पढ़ हाफिज हुआ ॥ ५९ ॥
दादू अलफ एक अल्लाह का, जे पढ़ जाने कोय ।
कुरान कतेवा इलम सबहि, पढ़कर पूरा हाये ॥ ५५ ॥
( स्मरण अंग २ )
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें