शनिवार, 13 सितंबर 2014

#daduji

||दादूराम सत्यराम||
अथ बेली का अंग ३६ ~
‘‘सब जग बैठा जीति कर, काहू लिप्त न होइ’’ - इस सूत्र के व्याख्यान स्वरूप, साक्षीभूत अंग के तदनन्तर अब बेली का अंग निरूपण करते हैं ।
मंगलाचरण ~
दादू नमो नमो निरंजनं, नमस्कार गुरुदेवतः ।
वन्दनं सर्व साधवा, प्रणामं पारंगतः ॥ १ ॥
टीका ~ अब हरि, गुरु संतों को नमो नमस्कार वन्दना करके बेली का स्वरूप प्रतिपादन करते हैं ॥ १ ॥

दादू अमृत रूपी नाम ले, आत्म तत्वहि पोषै ।
सहजैं सहज समाधि में, धरणी जल शोषै ॥ २ ॥
टीका ~ हे जिज्ञासु ! निर्वासनिक निष्काम भाव से आत्म - स्वरूप परमेश्वर का, अभेद निश्चय रूप नाम - स्मरण रूप अमृत, काल से छुड़ाने वाला, अन्तःकरण चतुष्टय की चारों अवस्थाओं(जागृत, स्वप्न, सुषुप्ति, तुरिया) में, आत्माकार वृत्ति की दृढ़ता स्थिति में, आत्म - तत्व की भावना रूप बेली को पोषण करता रहे, और निर्द्वन्द्व सहज समाधि में स्थित होकर धरती रूप शरीर में, नाम - स्मरण रूप जल को पीता रहे ॥ २ ॥

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