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*श्री सन्त-गुण-सागरामृत श्री दादूराम कथा अतिपावन गंगा* ~
स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~
संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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*(“विंशति तरंग” ३६/३८)*
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*इन्दव छन्द -कूवां खुदाया खारा पानी निकला*
मोरड़े ताल तटे वटवृक्ष जु,
दादु दयालु धरैं निज ध्याना ।
सेवक आय करें परणाम रू,
अर्ज करें - जल खार बरखाना ॥
आप दया कर दूर करो दुख,
हो मधुरा जल, भाखहु थाना ।
संत दया करि ताहिं बतावत,
ताल तटे इक कूप खुदाना ॥३६॥
कूप खुदाय रु बांध दिये जन,
खारहिं नीर तहाँ पुनि आये ।
आप दया करि नीर - कमण्डलु,
झारि भरी पुनि कूप गिराये ॥
अमृत तुल्य हों पुनि नीर जु,
मिष्ठ सुपेय भरे सरसाये ।
पीवत नीर भये जन तृप्तहि,
यों जनता दुख ताप नशाये ॥३७॥
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*- दोहा -*
*मोरड़ा कूप में श्री दादूजी ने कमण्डल पानी डाला मिठा हुआ*
सोलह सो अट्ठावना, लीला मोरड़े कीन्ह ।
नीर मधुर करि कूप में, दादू परचा दीन्ह ॥३८॥
श्री दादूजी मोरड़ा ग्राम में एक वटवृक्ष के नीचे भजन ध्यान में लीन थे । उस समय एक सेवक ने आकर प्रार्थना की - हे गुरुदेव ! ग्राम में सभी कूपों का जल खारा है, जिससे ग्रामवासी दु:खी है । आप कृपा करके मीठे पानी का उपाय बताइये । श्री दादूजी ने कहा - इस तालाब के किनारे एक कूप खोद लो, उसमें मीठा पानी आयेगा ।
संत आज्ञा मानकर ग्रामवासियों ने तालाब के किनारे एक कूप खोद लिया, किन्तु उसमें भी खारा पानी ही निकला । तब परमसिद्ध श्री दादूजी ने दया करके अपने कमण्डल का जल उस कूप में डाला, जिसके प्रभाव से उस कूप का जल सदा के लिये मीठा हो गया । अमृततुल्य सुपेय उस कूप जल को पीकर ग्रामवासी तृप्त हो गये, उनका दु:ख सन्ताप दूर हो गया । मोरड़ा में यह लीला विक्रम संवत १६५८ में हुई ॥३६-३८॥
(क्रमशः)
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