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साभार ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*सीकरी प्रसंग एकादश दिन*
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११ वें दिन बादशाह ने वीरबल को भेजकर सत्संग के लिये दादूजी को बुलवाया । वीरबल ने जाकर प्रार्थना की और कहा - आपने बादशाह को तेजोमय तखत दिखाकर हिन्दू धर्म की रक्षा की है । दादूजी ने कहा - हमने तो कु़छ नहीं किया था । वह तो संतों का योग क्षेम करने वाले राम की ही लीला थी । वे ही -
*देवे लेवे सब करे, जिन सिरजे सब लोय ।*
*दादू बंदा महल में, शोभा करे सब कोय ॥१६॥*
(साक्षी भूत अं. ३५)
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फिर वीरबल ने कहा - पधारिये । दादूजी ने कहा - अब हम वहां जाकर क्या करेंगे ? वहां वे ही वक्ता अधिक जाते हैं, जिनको धनादि की इच्छा हो । सत्संग की इच्छा हो तो अब बादशाह को स्वयं ही आना चाहिये । यह कह कर साखी बोली -
रूप राग गुण अणसरे, जहँ माया तहँ जाय ।
विद्या अक्षर पंडिता, तहां रहै घर छाय ॥२७॥
(माया अंग १२)
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दादूजी का उक्त वचन सुनकर वीरबल लौट आया और दादूजी का वचन बादशाह को सुना दिया । फिर अकबर बादशाह स्वयं ही दादूजी के पास गया और बोला - मेरी भूल हुई है आप तो क्षमाशील संत हैं । क्षमा ही करेंगे ।
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दादूजी ने कहा -
दादू यह तो दोजख देखिये, काम क्रोध अहंकार ।
रात दिवस जरबो करे, आपा आग विकार ।
फिर अकबर ने कहा - आपने हमको महान् चमत्कार दिख दिया है ।
दादूजी ने कहा -
करे करावे सांइयां, जिन दिया औजूद ।
दादू बंदा बीच में, शोभा को मौजूद ॥
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काजी मुल्ला आदि के कहने से तुमको संतों का अनादर नहीं करना चाहिये ।
दादू जब ही साधु सताइये, तब ही ऊँघ पलट ।
आकाश धँसै, धरती खिसै, तीनों लोक गरक ॥३॥
दादू जिहिं घर निंदा साधु की, सो घर गये समूल ।
तिनकी नींव न पाइये, नांव न ठांव न धूल ॥४॥
दादू निंदा नाम न लीजिये, स्वप्नै ही जनि होइ ।
ना हम कहैं, न तुम सुनो, हमैं जनि भाषै कोइ ॥५॥
(निन्दा अंग ३२)
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उक्त तीनों साखियां सुनकर अकबर ने कहा - अब आगे ध्यान रखूंगा । अब आप बताइये - १ - ईश्वर की जाति क्या है ? २ - ईश्वर को प्रिय क्या है ? ३ - ईश्वर का शरीर क्या है ? ४ - ईश्वर का रंग क्या है ?
दादूजी ने कहा -
दादू इश्क अलह की जाति है, इश्क अलह का अंग ।
इश्क अल्लाह वजूद है, इश्क अलह का रंग ॥
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अपने प्रश्नों के उचित उत्तर सुनकर बादशाह अति प्रसन्न हुआ और सोचा - इनकी सेवा अवश्य करनी चाहिये किन्तु ये लेते तो कु़छ भी नहीं है । फिर सोचा - मेरा कुरान पढ़ा हुआ तोता ये ले लें तो उसका रत्न जटित पींजरा इनकी सेवा में जा सकता है ।
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फिर बादशाह ने कहा - मेरा तोता कुरान पढ़ा हुआ है आपको कुरान सुनाया करेगा । उसे आप स्वीकार करें । तब दादूजी ने कहा -
दादू यह तन पींजरा, मांहीं मन सूवा ।
एक नाम अल्लाह का, पढ़ हाफिज हुआ ॥५९॥
दादू अलफ एक अल्लाह का, जे पढ़ जाने कोय ।
कुरान कतेवा इलम सब, पढ़कर पूरा होय ॥५५॥
(स्मरण अंग २)
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