सोमवार, 1 सितंबर 2014

#daduji 

||दादूराम सत्यराम||
मुझ भावै सो मैं किया, तुझ भावै सो नांहि ।
दादू गुनहगार है, मैं देख्या मन मांहि ॥ ७९ ॥
टीका ~ हे दयालु ! जो हमारे मन को व्यावहारिक काम प्रिय लगे, वह ही हमारे मन ने काम किये हैं । आपको प्रिय लगने वाले कोई भी काम हमने नहीं किये, इसीलिये हम आपके गुनहगार अपराधी हैं । मैंने मन में भली प्रकार से विचार कर देख लिया है कि हम आपके दरबार के सदैव अपराधी बंदे हैं ॥ ७९ ॥

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