卐 सत्यराम सा 卐
काल न सूझै कंध पर, मन चितवै बहु आश ।
दादू जीव जाणै नहीं, कठिन काल की पाश ॥
दादू काल हमारे कंध चढ, सदा बजावै तूर ।
कालहरण कर्त्ता पुरुष, क्यों न सँभाले शूर ॥
जहाँ जहाँ दादू पग धरै, तहाँ काल का फंध ।
सर ऊपर सांधे खड़ा, अजहुँ न चेते अंध ॥
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साभार : बिष्णु देव चंद्रवंशी ~
------●●●●|||| पछतावा ||||●●●●-------
हर समय बिस्तर बाँधे तैयार रहो । न जाने किस समय वारण्ट आ जाय। मृत्यु का वारन्ट गिरफ्तारी वारन्ट होता है, उसमें फिर अपील का गुंजाइश नहीं होती, तुरन्त सब छोड़ कर चलना पड़ेगा । जो जहां है वहीं पड़ा रह जायगा । पहले से तैयार रहोगे तो चलते समय कष्ट नहीं होगा । जो हर समय चलने के लिये तैयार रहेगा उससे कभी भी पाप नहीं होगा । परलोक को भूल जाने से ही दुराचार पापाचार होता है। यहि हर समय स्मरण रहे कि यह सब तो एक दिन छोड़कर ही चलना है तो फिर मनुष्य असत्य और अविहिताचरण को कभी न अपनाये । विचार करो कि जब पिता, पितमह, परपितमह नहीं रहे तो ऐसा तो नहीं हो सकता कि हम रहें। जब चलना निश्चित है तो पहले से ही तैयारी कर लोगे तब यात्रा में आराम रहेगा; और पहले से तैयारी नहीं की तो फिर कष्ट ही होगा ।
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सतर्क रहो कि - 'कोई काम ऐसा न हो जाय जिसके लिये चलते समय पछताना पड़े।' यदि सतर्क नहीं रहोगे तो नीचे गिरने से बच नहीं सकते। संसार का प्रवाह ऐसा है कि नीचे की ओर ही ले जाता है । इन्द्रियों की प्रवृत्तियाँ मनुष्य को बहिर्मुंखी बनाती हैं और बहिर्मुंखता में वासनाओं के चक्कर में पड़कर फिर अधिक विचार करने की क्षमता नहीं रह जाती । इसलिये सदैव सतर्क रहने की आवश्यकता है । मनुष्यय अपने जीवन - काल में जो अच्छा - बुरा करता है वह मरणकाल में सब स्मरण आ जाता है । जो - जो पाप हुए रहते हैं उनके भयंकर फल का स्मरण करके जीव अन्तकाल में बहुत पछताता और बहुत दुखी होता है। इसलिये सतर्क रहना चाहिये कि ऐसा कोई पाप न हो जाय जिसके लिये अन्त समय में पछताना पड़े ।
काल न सूझै कंध पर, मन चितवै बहु आश ।
दादू जीव जाणै नहीं, कठिन काल की पाश ॥
दादू काल हमारे कंध चढ, सदा बजावै तूर ।
कालहरण कर्त्ता पुरुष, क्यों न सँभाले शूर ॥
जहाँ जहाँ दादू पग धरै, तहाँ काल का फंध ।
सर ऊपर सांधे खड़ा, अजहुँ न चेते अंध ॥
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साभार : बिष्णु देव चंद्रवंशी ~
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हर समय बिस्तर बाँधे तैयार रहो । न जाने किस समय वारण्ट आ जाय। मृत्यु का वारन्ट गिरफ्तारी वारन्ट होता है, उसमें फिर अपील का गुंजाइश नहीं होती, तुरन्त सब छोड़ कर चलना पड़ेगा । जो जहां है वहीं पड़ा रह जायगा । पहले से तैयार रहोगे तो चलते समय कष्ट नहीं होगा । जो हर समय चलने के लिये तैयार रहेगा उससे कभी भी पाप नहीं होगा । परलोक को भूल जाने से ही दुराचार पापाचार होता है। यहि हर समय स्मरण रहे कि यह सब तो एक दिन छोड़कर ही चलना है तो फिर मनुष्य असत्य और अविहिताचरण को कभी न अपनाये । विचार करो कि जब पिता, पितमह, परपितमह नहीं रहे तो ऐसा तो नहीं हो सकता कि हम रहें। जब चलना निश्चित है तो पहले से ही तैयारी कर लोगे तब यात्रा में आराम रहेगा; और पहले से तैयारी नहीं की तो फिर कष्ट ही होगा ।
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सतर्क रहो कि - 'कोई काम ऐसा न हो जाय जिसके लिये चलते समय पछताना पड़े।' यदि सतर्क नहीं रहोगे तो नीचे गिरने से बच नहीं सकते। संसार का प्रवाह ऐसा है कि नीचे की ओर ही ले जाता है । इन्द्रियों की प्रवृत्तियाँ मनुष्य को बहिर्मुंखी बनाती हैं और बहिर्मुंखता में वासनाओं के चक्कर में पड़कर फिर अधिक विचार करने की क्षमता नहीं रह जाती । इसलिये सदैव सतर्क रहने की आवश्यकता है । मनुष्यय अपने जीवन - काल में जो अच्छा - बुरा करता है वह मरणकाल में सब स्मरण आ जाता है । जो - जो पाप हुए रहते हैं उनके भयंकर फल का स्मरण करके जीव अन्तकाल में बहुत पछताता और बहुत दुखी होता है। इसलिये सतर्क रहना चाहिये कि ऐसा कोई पाप न हो जाय जिसके लिये अन्त समय में पछताना पड़े ।
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