सोमवार, 1 सितंबर 2014

= विनती का अँग ३४ =(८०)

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टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
*विनती का अँग ३४* 
*मुझ भावै सो मैं किया, तुझ भावै सो नांहि ।*
*दादू गुनहगार है, मैं देख्या मन मांहि ॥८०॥*
टीका ~ हे दयालु ! जो हमारे मन को व्यावहारिक काम प्रिय लगे, वह ही हमारे मन ने काम किये हैं । आपको प्रिय लगने वाले कोई भी काम हमने नहीं किये, इसीलिये हम आपके गुनहगार अपराधी हैं । मैंने मन में भली प्रकार से विचार कर देख लिया है कि हम आपके दरबार के सदैव अपराधी बंदे हैं ॥८०॥ 
(क्रमशः)

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