#daduji
॥ श्री दादूदयालवे नमः॥
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*सवैया ग्रन्थ(सुन्दर विलास)*
साभार ~ @महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य - श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व
राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*७. विश्वास का अंग*
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*काहे कौं दौरत है दशहूं दिश,*
*तूं नर देखि कियौ हरि जू कौ ।*
*बैठ रहै दूरिकैं मुख मूंदि,*
*उघारीकैं दांत खवाइ है टूकौ ॥*
*गर्भ थकै प्रतिपाल करी जब,*
*हो रह्यौ तब तूं जड मूकौ ।*
*सुन्दर क्यौं बिललात फिरै अब,*
*राखि हृदै बिसवास प्रभू कौ ॥५॥*
*भोजन के लिए भगवान् पर विश्वास रख* : अरे मानव ! तूँ क्यों व्यर्थ ही चारों ओर दौड़ता फिर रहा है । अरे ! तूँ सिरजनहार का चमत्कार तो देख कि -
तूँ कहीं भी छिप कर बैठा रहेगा, फिर भी वह वहाँ पहुँच कर तेरे दाँत खोल कर तुझे भोजन करा ही देगा ।
क्या तुझे यह ज्ञात नहीं कि जब तू गर्भाशय में गूँगे और अचेतन और समान पड़ा था तभी से वह तेरी रक्षा में सर्वथा सावधान है ।
*श्री सुन्दरदास जी* कहते पूछ्ते हैं – तब तूँ क्यों इधर उधर विलखता फिर रहा है । क्यों नहीं तू अपने सिरजनहार प्रभु का विश्वास कर उस का ही अपने हृदय में ध्यान रखता है ! ॥५॥
(क्रमशः)
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