मंगलवार, 2 सितंबर 2014

#daduji 

सीकरी प्रसंग १७ वां दिन

१७ वें दिन अकबर बादशाह ने पू़छा- जो ज्ञान आप हमको देते है वह आपको कहां से प्राप्त हुआ था ? दादूजी ने कहा - मेरे गुरु वृद्ध(ब्रह्म) भगवान् ने अहमदाबात के कांकरिया तालाब पर दिया था । फिर ७७ का पद- 
७७. गुरु अधीन ज्ञान । दादरा
बाबा ! गुरुमुख ज्ञाना रे, गुरुमुख ध्याना रे ॥ टेक ॥
गुरुमुख दाता गुरुमुख राता, गुरुमुख गवना रे ।
गुरुमुख भवना, गुरुमुख छवना, गुरुमुख रवना रे ॥ १ ॥
गुरुमुख पूरा, गुरुमुख शूरा, गुरुमुख वाणी रे ।
गुरुमुख देणा, गुरुमुख लेणा, गुरुमुख जाणी रे ॥ २ ॥
गुरुमुख गहबा, गुरुमुख रहबा, गुरुमुख न्यारा रे ।
गुरुमुख सारा, गुरुमुख तारा, गुरुमुख पारा रे ॥ ३ ॥
गुरुमुख राया, गुरुमुख पाया, गुरुमुख मेला रे ।
गुरुमुख तेजं, गुरुमुख सेजं, दादू खेला रे ॥ ४ ॥
भी सुनाया और कहा - पार्माथिक ज्ञान तो सद्गुरु से ही होता है, असद्गुरु से नहीं । अकबर ने पू़छा - असद्गुरु किसको कहते है ? दादूजी ने कहा-
शोधी नहीं शरीर की, औरों को उपदेश । 
दादू अचरज देखिया, ये जाहिंगे किस देश ॥ १८ ॥
शोधी नही शरीर की, कहै अगम की बात ।
जान कहावें बापुड़े, आयुध लिये हाथ ॥ १९ ॥
( गुरु अंग १)
इत्यादिक अनेक साखियों से असद्गुरु का परिचय दिया और असद्गुरु को विस्तार से समझाया । फिर सत्संग समाप्त हो गया ।



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