गुरुवार, 23 अक्टूबर 2014

= २८ =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
https://www.facebook.com/DADUVANI
*#श्रीदादूदयालवाणी०आत्मदर्शन* द्वितीय भाग : शब्दभाग(उत्तरार्ध)
राग गौड़ी १(गायन समय दिन ३ से ६)
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
.
२८. उपदेश । एकताल ~
मन निर्मल तन निर्मल भाई, 
आन उपाइ विकार न जाई ॥टेक॥
जो मन कोयला तो तन कारा, 
कोटि करै नहिं जाइ विकारा ॥१॥
जो मन विषहर तो तन भुवंगा, 
करै उपाइ विषय पुनि संगा ॥२॥
मन मैला तन उज्जवल नांहीं, 
बहु पचहारे विकार न जांहीं ॥३॥
मन निर्मल तन निर्मल होई, 
दादू साच विचारै कोई ॥४॥
टीका ~ ब्रह्मऋषि दादूदयाल महाराज सत्य उपदेश करते हैं कि हे जिज्ञासु ! मन, पाप आदि मल से रहित होगा तो शरीर भी सब दोषों से मुक्त हो जायेगा और दूसरे साधनों से मन के विकार नहीं निवृत्त होंगे । 
.
जो मन पाप आदि दोषों से कोयले के समान काला होगा, तो तन भी सदोष बना रहेगा । बहिरंग कितने ही सकाम कर्म - रूपी, साधन कर्म कर लो, तब भी तन - मन उज्जवल नहीं होंगे । 
.
जो मन विषय - वासना रूप विष से विषधर रूप है, तो तन भी सर्प रूप ही है । उस समय इन्द्रियों के विषय प्राप्ति के ही साधन करेंगे । 
.
मन मलीन है वासनाओं से, तो शरीर, इन्द्रियें आदि निर्दोष नहीं हो सकते । बहिरंग साधनों से बहुत से पच - पच कर के थक गये, परन्तु मन, इन्द्रिय और शरीर आदि निर्दोष नहीं हुए । 
.
जब मन सत्य - कामी, सत्य - प्रेमी, सत्य - नेमी बनेगा, तभी मन निर्मल होगा । तब फिर शरीर इन्द्रिय भी निर्मल हो जायेंगे । 
.
परन्तु जो साधक मन से, वचन से, तन से, सत्य सम्बन्धी निष्काम कर्मों को विचार - पूर्व करेंगे, उन्हीं का तन, मन, इन्द्रियाँ उज्जवल बनेंगी ।
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें