बुधवार, 8 अक्टूबर 2014

= १३३ =

#daduji
卐 सत्यराम सा 卐 
दादू बेली आत्मा, सहज फूल फल होइ । 
सहज सहज सतगुरु कहै, बूझै बिरला कोइ ॥ 
जे साहिब सींचै नहीं, तो बेली कुम्हलाइ । 
दादू सींचै सांइयाँ, तो बेली बधती जाइ ॥ 
हरि तरुवर तत आत्मा, बेली कर विस्तार । 
दादू लागै अमर फल, कोइ साधू सींचनहार ॥ 
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साभार : "भगवान् श्रीकृष्ण" 

भक्ति का वृक्ष जब किसी साधक के हृदय में छोटे पौधे के रूप में होता है तब उसे हानि का भय माया रूपी बकरी से भी होता है। अतः उस पौधे की रक्षा के लिए उसके चारो तरफ विचार रूपी घेरा लगाकर सत्संग रूपी जल से सींचा जाता है। तब उसके चारों ओर से षाखाएं प्रषाखाएं निकलने लगती है और वह आकाष की ओर चढ़ने-बढ़ने लगता है। 

आम के वृक्ष पर आम फल ही लगेंगे, केले पर केला ! भक्ति रूप वृक्ष पर कैसे-२ फल लगें कोई बता नहीं सकता। अर्थात भक्ति रूप वृक्ष पर अनेकों प्रकार के फल लगते हैं जो संसार में नहीं पाये जाते ! 

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