बुधवार, 29 अक्टूबर 2014

= १५९ =

#daduji
卐 सत्यराम सा 卐 
अखंड ज्योति जहँ जागै, 
तहँ राम नाम ल्यौ लागै । 
तहँ राम रहै भरपूरा, 
हरि संग रहै नहिं दूरा ॥ 
तिरवेणी तट तीरा, 
तहँ अमर अमोलक हीरा । 
उस हीरे सौं मन लागा, 
तब भरम गया भय भागा ॥ 
दादू देख हरि पावा, 
हरि सहजैं संग लखावा । 
पूरण परम निधाना, 
निज निरखत हौं भगवाना ॥ 
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शरीर बाती के सामान है और चेतना लौ है । 
चेतना को पहचानो । 
याद रखो, "मैं बाती नहीं हूँ, लौ हूँ, ज्योति हूँ ।"

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