#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
अखंड ज्योति जहँ जागै,
तहँ राम नाम ल्यौ लागै ।
तहँ राम रहै भरपूरा,
हरि संग रहै नहिं दूरा ॥
तिरवेणी तट तीरा,
तहँ अमर अमोलक हीरा ।
उस हीरे सौं मन लागा,
तब भरम गया भय भागा ॥
दादू देख हरि पावा,
हरि सहजैं संग लखावा ।
पूरण परम निधाना,
निज निरखत हौं भगवाना ॥
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शरीर बाती के सामान है और चेतना लौ है ।
चेतना को पहचानो ।
याद रखो, "मैं बाती नहीं हूँ, लौ हूँ, ज्योति हूँ ।"

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