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*#श्रीदादूदयालवाणी०आत्मदर्शन* द्वितीय भाग : शब्दभाग(उत्तरार्ध)
राग गौड़ी १(गायन समय दिन ३ से ६)
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
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२५. हितोपदेश । चटताल ~
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जियरा मेरे सुमिर सार,
काम क्रोध मद तज विकार ॥टेक॥
तूँ जनि भूले मन गँवार,
शिर भार न लीजे मान हार ॥१॥
सुन समझायो बार - बार,
अजहूँ न चेतै, हो हुसियार ॥२॥
कर तैसे भव तिरिये पार,
दादू अब तैं यही विचार ॥३॥
टीका ~ ब्रह्मऋषि अपने को उपदेश करके कहते हैं कि हे हमारे जीव ! सबका सार स्वरूप जो परमेश्वर है, उनके नाम का निष्काम स्मरण कर । काम, क्रोध, आठ प्रकार का मद आदि, इन सम्पूर्ण विकारों का त्याग कर ।
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हे हमारे मन ! ‘गँवार’ कहिये विषयों के यार ! प्रभु के स्मरण को नहीं भूलना और पाप का बोझा सिर पर नहीं लेना । प्रभु के स्मरण से हार नही मानना ।
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गुरु और संतों ने मुझे अपने शब्दों के द्वारा तुझे बार - बार समझाया है, उसी को सुनकर विचार कर । तूँ अभी भी नहीं चेत रहा है । अब इस अज्ञानता को छोड़कर प्रभु - स्मरण में लीन हो ।
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हे मन ! अब वैसा ही काम कर, जिससे इस संसार - सागर से पार हो सके । अब तूँ केवल यही एक विचार कर ।

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