#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
दादू केई दौड़े द्वारिका, केई काशी जांहि ।
केई मथुरा को चले, साहिब घट ही मांहि ॥
दादू सब घट मांही रम रह्या, बिरला बूझै कोइ ।
सोई बूझै राम को, जे राम सनेही होइ ॥
दादू जड़मति जीव जाणै नहीं, परम स्वाद सुख जाइ ।
चेतन समझै स्वाद सुख, पीवै प्रेम अघाइ ॥
जागत जे आनन्द करै, सौ पावै सुख स्वाद ।
सूते सुख ना पाइये, प्रेम गँवाया बाद ॥

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