शुक्रवार, 24 अक्टूबर 2014

= “त्रयो विं. त.” १४/१७ =

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*श्री सन्त-गुण-सागरामृत श्री दादूराम कथा अतिपावन गंगा* ~
स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~
संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्‍वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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*(“त्रयोविंशति तरंग” १४/१७)*
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*साखी और शब्दों का जोड़ -* 
पच्चीस सौ पैंसठ कथी, साखी भाग सुलाग ।
पद भागहिं उतरार्ध है; सत बीस तहँ राग ॥१४॥ 
वेद चतुर युग जानिये, पद संख्या परमाण ।
अक्षर एकहिं लक्ष हैं, साठ हजार पिछान ॥१५॥ 
पूर्वार्ध साखी भाग में २५६५ साखियाँ हैं, तथा उत्तरार्ध पदभाग में २७ रागों में निबद्ध ४४४ पद है । वर्तमान सम्पूर्ण वाणी के अक्षरों की संख्या एक लाख साठ हजार मानी गई है ॥१४-१५॥(साखी अर्थात् अनुभव साक्षी के आधार पर रचित दोहे)
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संख्या पाँच सहस्त्र थी, पद साखी मिलि दोय ।
संत लिखि निज ग्रन्थ में, तीन सहस्त्र रु नोय ॥१६॥ 
बाकी गुरु उपदेश जो, मौखिक देवहिं पंथ ।
लुप्त भो हरिप्रेरणा, सम्मिलित नाहीं ग्रन्थ ॥१७॥ 
यद्यपि सम्पूर्ण उच्चारित वाणी की संख्या(पद एवं साखी भाग मिलाकर) पाँच हजार थी, किन्तु संतजनों द्वारा जितनी संग्रहीत हो पाई - वह संख्या तीन हजार नौ है । शेष विलुप्त वाणी वह है, जो कभी पंथ यात्रा में चलते - चलते ही उपदेश रूप में उच्चारित हुई । उसका संग्रह लिखित रूप में नहीं हो सका । सम्भवत: हरि प्रेरणा ही ऐसी रही होगी ॥१६-१७॥ 
(क्रमशः)

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