शुक्रवार, 24 अक्टूबर 2014

*बूली प्रसंग*

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साभार ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*बूली प्रसंग*
दादू निमष न न्यारा कीजिये, अंतर तै उर नाम ।
कोटि पतित पावन भये, केवल कहताँ राम ॥२५॥
(स्मरण अंग २)
जयमल कछवाहा के ग्राम बूली में छाजू नामक व्यक्ति ने दादूजी से पू़छा - स्वामिन् ! मैं जिसे सदा कर सकूँ ऐसा साधन मुझे बताइये । तब दादूजी ने उक्त २५ की साखी से उसे उपदेश किया था । 
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फिर वहां ही हरिदास ने पू़छा - स्वामिन् ! मन विषय विष से रहित कैसे हो ? तब दादूजी ने नीचे लिखी साखी कही -
दादू निर्विष नाम से, तन मन सहजैं होय ।
राम निरोगा करेगा, दूजा नांहीं कोय ॥६३॥
(स्मरण अंग २)
उसे दादूजी ने उक्त ६३ की साखी से उत्तर दिया था । 
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फिर उसके पास बैठे हुये मोहन ने पू़छा - स्वमिन् ! मायिक प्रेम हृदय से कैसे हटे ? तब दादूजी ने नीचे लिखी साखी से उत्तर दिया था -
ब्रह्म भक्ति जब ऊपजे, तब माया भक्ति विलाय ।
दादू निर्मल मल गया, ज्यों रवि तिमिर नशाय ॥६४॥
(स्मरण अंग २)

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