#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
राम जपै रुचि साधु को, साधु जपै रुचि राम ।
दादू दोनों एक टग, यहु आरम्भ यहु काम ॥
जहाँ राम तहाँ संतजन, जहाँ साधु तहाँ राम ।
दादू दोन्यूं एकठे, अरस परस विश्राम ॥
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साभार : Kripa Shankar B ~
जब कोई व्यक्ति प्रभु प्रेम की तड़फ और अभीप्सा में निरंतर उनको पाने के लिए व्याकुल रहता है तब वह अनायास ही उनकी ओर अग्रसर होता रहता है। प्रभु भी उसे पाना चाहते हैं।
अन्यथा वह निरंतर पीछे की ओर ही फिसलता रहता है। जीवन का सार प्रभुप्रेम में बिताए क्षणों में ही है।

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