शनिवार, 4 अक्टूबर 2014

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#daduji
卐 सत्यराम सा 卐 
दादू अचेत न होइये, चेतन सौं चित लाइ । 
मनवा सूता नींद भर, सांई संग जगाइ ॥ 
दादू अचेत न होइये, चेतन सौं करि चित्त । 
यह अनहद जहाँ थैं ऊपजै, खोजो तहाँ ही नित्त ॥ 
दादू जन ! कुछ चेत कर, सौदा लीजे सार । 
निखर कमाई न छूटणा, अपने जीव विचार ॥ 
बार बार यह तन नहीं, नर नारायण देह । 
दादू बहुरि न पाइये, जन्म अमोलिक येह ॥ 
एका एकी राम सों, कै साधु का संग । 
दादू अनत न जाइये, और काल का अंग ॥ 
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साभार : Rp Tripathi
**क्या हम मानव हैं ..? :: परम कल्याणकारी व्योहारिक चिंतन** 

कृपया विचार करें - 
यदि बाढ़ के पानी में, डूब कर मरने के भय से, शेर और बकरी, एक ही पेड़ की डाल पर, साथ साथ बैठे ही नहीं, वरन्‌ शेर, बकरी की मदद करते भी दिखे, तो क्या इसे शेर का ह्र्दय परिवर्तन मान, बकरी का हितैशी माना जा सकता है ..? 

कुछ वर्ष पूर्व, हमारे भारत के समाचार-पत्रों में, उत्तर-पूर्वी प्रांत बिहार की बाढ़ में लिया गया एक चित्र, बहुत चर्चित रहा जिसमें, बाढ़ के पानी से बचने के लिए, एक शेर और एक बकरी, एक ही पेड़ की डाल पर, साथ-साथ बैठे थे ..!! 

पत्रकारों और समाज-सुधारकों ने, उस चित्र के माध्यम से, मानव-समाज को, जानवरों से शिक्षा ले, आपस में मिल जुल कर रहने के, अनंत व्याख्यान भी दिये ...!! परन्तु, 3 दिन बाद जब बाढ़ का पानी उतरा, तो सबसे पहला कार्य शेर ने, बकरी को मारकर खाने का ही किया ..!! अर्थात, यह शेर का ह्र्दय परिवर्तन नहीं, वरन मौत के भय के कारण का, आचरण था ..!! 

इसी प्रकार मित्रों, 
यदि मानव भी, मौत या सजा के डर से, चाहे वह भौतिक क़ानून का डर हो, समाज का डर हो, या मरने के बाद, नर्क अर्थात भगवान से भी सजा का डर हो ..? किसी के भी साथ, मित्रवत व्योहार करे ..!! यहाँ तक कि -- 
मन्दिर/मस्जिद/समाधि/मजार/गुरुद्वारा/चर्च/धार्मिक-गोष्ठी, या कोई अन्य पुन्य कार्य के संयुक्त आयोजन में भी, देश के स्वतंत्रता-संग्राम आंदोलन की तरह, तन-मन-धन से भी शामिल हो, तो भी परिणाम कभी भी, शेर और बकरी से अलग, नहीं आयेगा ..? 

मित्रों, आजादी के आंदोलन के बाद, देश से अँगरेजों का खतरा कम/खत्म होते ही,और स्वतंत्रता प्रप्ति के बाद क्या कर रहे हैं, यह सब इस कटु सत्य का उदाहरण है ..!! विचार करें :--- 

देश को मजहब के नाम पर बाँटने के अलाबा, क्या अँगरेजों से अधिक मात्रा में हमने स्वयं ही, एक दूसरे का, नर-संहार नहीं किया ..? और क्या आज तक भी, नहीं कर रहे ..? या, क़ानून के संरक्षक बन, स्वयं अपने ही देशवासियों का, तरह तरह से शोषण नहीं कर रहे ..? अर्थात, राम-राज्य की जगह, जंगल-राज्य, की स्थापना में नहीं लग गए ..? 

परन्तु मित्रों यदि हमें, इस सब से अपना बचाव करना है तो हमें, तत्व-दर्शी/आत्म-ज्ञानी, संतों के, निम्न-कथन को तो, आत्मसात, करना ही होगा ..!! उन सब का एक स्वर से, कथन है कि --- सही मायनों में मानव बनने का, सिर्फ़ एक ही उपाय है, और वह है .. स्वरूप-ज्ञान या आत्म-ज्ञान की जाग्रति ..!! अर्थात, भय-मुक्त आचरण ..!! क्योंकि --- 

जब तक हमारे कार्य, 
किसी भी तरह के भय से प्रेरित हैं, तो फिर चाहे हम, कितनी भी विद्याओं के ज्ञाता हों ..? कितने ही उच्च पद पर आसीन हों ..? या चाहे रावण या कंस जैंसे असीम बल-शाली और अतुल संपत्ति/साम्राज्य के मालिक भी हों ..? या चाहे हम साधु का चोला पहिन, जन-कल्याण के कार्यों में, दिन रात व्यस्त भी हों ..? तो भी हम, आपने आपको, अज्ञानता/हिंसक-प्र्विर्त्ति से कार्य करने वालों की श्रेणी से, पृथक, नहीं कर पायेंगे ..!! 

सार रुप में - 
एकमात्र, स्वरूप-ज्ञान/आत्म-ज्ञान ही हमें, 
भय-मुक्त कर -- विवेक/सावधानी/प्रेम पूर्ण, कर्म के लिए, कर्म करने वाला, अर्थात सही अर्थो में, मानव कहलाने का अधिकारी, बना सकता है, अन्य कोई उपाय नहीं ..!! 

**ॐ कृष्णम वंदे जगत् गुरुम**

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