सोमवार, 20 अक्टूबर 2014

#daduji 

॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥
२६.(क) - भय चेतावनी । त्रिताल ~
जियरा, चेत रे जनि जारे ।
हेजैं हरि सौं प्रीति न कीन्ही, जन्म अमोलक हारे ॥ टेक ॥
बेर बेर समझायो रे जियरा, अचेत न होइ गंवारे ।
यहु तन है कागद की गुड़िया, कछु इक चेत विचारे ॥ १ ॥
तिल तिल तुझको हानि होत है, जे पल राम बिसारे ।
भय भारी दादू के जिय में, कहु कैसे कर डारे ॥ २ ॥
टीका ~ ब्रह्मऋषि मन को सावधान कर रहे हैं । हे हमारे मनरूप जीव ! अज्ञानता से चेत कर, वासनाओं की ओर अब नहीं जाना । तैंने अब तक हेत पूर्वक हरि से प्रीति नहीं करी । इस अमूल्य मनुष्य - जन्म को व्यर्थ ही क्यों गंवाता है ! अर्थात् क्यों खोता है ? हे गँवार ! विषयों के प्रेमी ! तुझे बारबार ईश्‍वर वचन और गुरु वचनों से चेत कराया कि यह शरीर तो कागज की पतंग की तरह है, इसके फटने में कुछ भी देर नहीं लगेगी । कुछ तो अज्ञान से चेत कर और विचार कर देख । प्रभु के भजन बिना । क्षण - क्षण में तेरी हानि होती जा रही है, हे जीव ! परमेश्‍वर से विमुख रहने में तेरे लिये भारी भय की बात है । न मालूम, वह न्यायकारी ईश्‍वर क्या से क्या कर दें ?
छन्द -
पाय अमोलिक देह यह नर, 
क्यों न विचार करै दिल अन्दर । 
काम हु क्रोध हु लोभ हु मोह हु, 
लूटत हैं दसहुँ दिसि द्वन्दर ॥
तूँ अब वांछत है सुरलोक हि, 
कालहु पाइ परै सु पुरंदर । 
छाड़ि कुबुद्धि सुबुद्धि हिृदै धर, 
आतमराम भजै किन सुन्दर ॥ २६ ॥

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