गुरुवार, 9 अक्टूबर 2014

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*#श्रीदादूदयालवाणी०आत्मदर्शन* द्वितीय भाग : शब्दभाग(उत्तरार्ध)
राग गौड़ी १(गायन समय दिन ३ से ६)
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
१५. रंग ताल ~ 
क्यों हम जीवैं दास गुसाँई, 
जे तुम छाड़हु समर्थ साँई ॥टेक॥ 
जे तुम जन को मनहिं बिसारा, 
तो दूसर कौण संभालणहारा ॥१॥ 
जे तुम परिहर रहो नियारे, 
तो सेवक जाइ कवन के द्वारे ॥२॥ 
जे जन सेवक बहुत बिगारे, 
तो साहिब गरवा दोष निवारे ॥३॥ 
समर्थ साँई साहिब मेरा, 
दादू दास दीन है तेरा ॥४॥ 
टीका ~ ब्रह्मऋषि दादूदयाल महाराज अपने को उपलक्षण करके कहते हैं कि हे हमारे स्वामी परमेश्‍वर ! हम आपके बिना कैसे जीवित रह सकते हैं इस शरीर में ? हे समर्थ ! जो आप हमको दयारूप हाथ से छोड़ दोगे, तो फिर कौन हमको बचावेगा ? 
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हे प्रभु ! जो आप हमको अपने मन से विसार देओगे, तो फिर दूसरा कौन हमारी रक्षा करेगा ? 
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हे हरि ! यदि आप हमारा परित्याग करके हमसे अलग रहोगे, तो फिर दूसरा कौन हमारी संभाल करेगा ? हम किसके द्वार पर जायेंगे ? 
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हे प्रभु ! हम आपके निकम्मे सेवक बहुत बिगाड़ करें, तो भी आप तो हमारे स्वामी गम्भीर हो । हमारे दोषों पर ध्यान नहीं देवें । 
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हे समर्थ ! हे हमारे स्वामी ! आप ही हमारे ‘साहिब’ कहिये मालिक हो, हम तो आपके अति दीन गरीब दास हैं ।
(क्रमशः)

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