गुरुवार, 9 अक्टूबर 2014

= “द्वि विं. त.” ११/१२ =

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*श्री सन्त-गुण-सागरामृत श्री दादूराम कथा अतिपावन गंगा* ~
स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~
संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्‍वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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*(“द्विविंशति तरंग” ११/१२)*
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*शिष्यों ने टीलाजी को समझाया -* 
पंथ हि भार धरयो तुम्हरे शिर, सो अब सोच विचार करो जू ।
स्वामी स्वरुप षट्मास रहे अब, फेर भये किम ध्यान धरो जू ।
सिद्ध गुरु सम ज्ञान कहाँ हम, कौन उपायहिं पार तरो जू ।
पंथहिं लाज रहे जिम कीजहु, आप गुणी गुरु को सुमिरो जु ॥११॥ 
श्री दादूजी के पंथ का भावी उत्तरदायित्व आपके सिर पर ही आने वाला है, अत: सोच विचार करके निश्‍चित कर लीजिये कि - आगे किस उपाय से पार उतार पायेंगे । ऐसे सिद्ध गुरुदेव के समान हमें अन्य कौन ज्ञानोपदेश दे सकेगा । इन का स्वरूप तो अब छ: मास ही शेष रहा है, फिर आगे क्या होगा । पंथ की लाज कैसे रह पायेगी । इन सबका अभी विचार कीजिये । आप गुणी हैं गुरुदेव के पास जाकर भविष्य के लिये निर्देश प्राप्त कीजिये ॥११॥ 
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*मनोहर छन्द*
शिष्य गरीबदास की प्रार्थना प्रश्‍न पूछना - 
टीला जी सूं सब बात, सुनत गरीबदास,
दौरि आये स्वामी पास, कहे जोरि हाथ जू ।
स्वामी जी समर्थ आप, निर्भय पंथ थाप,
काहु की न शंक छाप, छोड़े पक्षपात जू ।
हिन्दु तुर्क हद छोड़ि, माया जाल दियो तोड़,
आप जैसी करे होड़ि, कौन भुवि जात जू ।
ब्रह्मलीन होवे जब, कैसे निरवाह तब,
अरज गरीबदास, गुरु पितु मात जू ॥१२॥ 
टीलाजी से प्रेरित होकर गरीबदास जी दौड़कर गुरुदेव के पास पहुँचे, और हाथ जोड़कर कहने लगे - हे स्वामी जी ! आप तो परम समर्थ हैं, आपने तो निर्भय होकर ब्रह्म पंथ की स्थापना कर दी, किसी की भी शंका नहीं मानी । न किसी से पक्षपात किया, और न विद्वेष । हिन्दु और तुर्कों की हद को छोड़कर आपने तो मायाजाल ही तोड़ दिया । आपकी समानता इस धरा पर और कौन कर सकता है ? किन्तु अब आपके ब्रह्म में लीन हो जाने पर हमारा निर्वाह कैसे होगा ? इस गरीबदास की अर्ज सुनिये । आप ही हमारे माता, पिता है । हमें मार्गदर्शन दीजिये ॥१२॥ 
(क्रमशः)

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