शनिवार, 1 नवंबर 2014

= १६३ =

#daduji
卐 सत्यराम सा 卐 
निरंजन निराकार है, ओंकार आकार । 
दादू सब रंग रूप सब, सब विधि सब विस्तार ॥ 
आदि शब्द ओंकार है, बोलै सब घट माँहि । 
दादू माया विस्तरी, परम तत्त यहु नांहि ॥ 
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साभार : अज्ञात
चाली म्हारी सूरता ये गगन मंडल में,
रात दिवस ला के माहि रे,
.
गगन मंडल में चमके रे बिजली,
ज्ञान घटा जद आई रे,
मधुर मधुर वाणी बोले रे ! पपईया
बैरन नींद उड़ जाई .१
.
ज्ञान घटा
ज्ञान घटा जद बरसन लागी रे ।
भीजे तीजड्या सवाई ।
पांच पच्चीस तीस मिल सखियां,
सुंदर शोभा तो पाई रे .२
.
फुलड़ा रो हार म्हाने,
गुरासा पहनायो,
मस्त रहू दिन राती रे.
प्रेम पुष्प म्हारा कबहु ना मुरझे ,
सदा ही रवे हरियाली .३
.
ओम सोम का तो घाल्या हिंडोला,
हिंडो चढ्यो नभ माँही रे,
में डरती म्हारे पिवजी ने पकड्या,
जे छोड़ू तो गिर ज्याई रे .४
.
देवनाथ जोगी गुरा तो मिल ग्या,
मैं वासे गम पाई रे ।
म्हाने कवे रे आनंद मही रहना,
सावन सदा हरियाली रे .५ 

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