शनिवार, 1 नवंबर 2014

१२. चाणक को अंग ~ १३

॥ श्री दादूदयालवे नमः॥ 
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*सवैया ग्रन्थ(सुन्दर विलास)* 
साभार ~ @महंत बजरंगदास शास्त्री जी, 
पूर्व प्राचार्य - श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व 
राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान) 
*१२. चाणक को अंग* 
*को उभया पय पांन करै नित,*
*कोउक खात है अन्न अलौंना ।* 
*कोउक कष्ट करै निशवासर,*
*कोउक बैठि कै साधत पौंना ॥* 
*कोउक बाद बिबाद करैं अति,*
*कोउक धारि रहै मुख मौना ।* 
*सुन्दर एक अज्ञान गये बिनु,*
*सिद्ध भयौ नहिं दीसत कौंना ॥१३॥* 
भले ही कोई अन्न त्याग कर दोनों समय दुग्धपान करे या फिर नमक रहित अन्न का भोजन करे । 
या कोई रात दिन कठोर तप, साधना में लगा रहे या कोई प्राणायाम धारण कर समाधि में लगा रहे । 
या कोई शास्त्र पढ़ कर उसके बाद(शास्त्रार्थ) में लगा रहे, या कोई इसके विपरीत मौन व्रत धारण कर बैठे । 
श्री सुन्दरदास जी कहते हैं - बिना इस एक अज्ञान के निवृत हुए, वह कितना ही बड़ा सिद्ध क्यों न हो जाय, उसे तत्व साक्षात्कार का एक कौण भी नहीं दिखायी दे सकता ॥१३॥
(क्रमशः)

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