बुधवार, 12 नवंबर 2014

= “च. विं. त.” ७/८ =

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*श्री सन्त-गुण-सागरामृत श्री दादूराम कथा अतिपावन गंगा* ~
स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~
संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्‍वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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*(“चतुर्विंशति तरंग” ७/८)*
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*इन्दव छन्द*
*संतों के डेरों पर भोजन व्यवस्था ~*
दास - गरीब उदार खरे चित, 
सामग्री बहु भेजत डेरे ।
तण्डुल शक्कर मेदा घीरत, 
साग रु पान दिये बहुतेरे ।
नाहिं करी गिनती सिध साधक, 
दे सबको पय साँझ सवेरे ।
बोहित संत पुवावत भोजन, 
केतिक को ॠधि देत घनेरे ॥७॥ 
संत सेवा में तत्पर उदारमना गरीबदास जी ने साधु संतों के डेरे पर आवश्यक सामग्रियाँ यथेष्ट रूप में भिजवाई । चावल, शक्कर, घी, मेदा, साग - सब्जियाँ, फल, दूध, जल आदि बहुत मात्रा में भिजवाये गये । बिना गिनती किये सिध साधकों को प्रात: सायं दूध पिलाया गया । संत बोहितदास जी डेरों पर जाकर साधुओं के लिये भोजन बनवाने की व्यवस्था करने लगे । अनेक सेवक भक्तों को सेवा कार्य में लगाया गया । धन व सामग्री बाँटी गई ॥७॥ 
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*राजा के तरफ से पूरी व्यवस्था थी ~*
भूप नारायण भोज रु दुर्गा, 
आ अमराव सभी सुख लीन्हे ॥ 
राज प्रधान कपूर हिं चंद जु, 
ले जन सेवक कारज कीन्हे ।
राजन के दरबारि सुसेवक, 
देखहिं रेख रू पहरे दीन्हे ॥ 
आवत भक्त रु सेव करें बहु, 
संतहि दर्शन सूं सुख चीन्हे ॥८॥ 
राजा नारायणसिंह, भोजराज, दुर्गादास, अमरावसिंह आदि ने सभी व्यवस्थाएं संभाल रखी थी । राजमंत्री कपूरचन्द अनेक जनसेवकों को साथ लेकर विभिन्न कार्य सम्पन्न करा रहे थे । राजा के अनेक दरबारी सेवक सामग्रियों की देख रेख में पहरा दे रहे थे । अन्य समागत सेवक भक्त भी संत सेवा में लगे हुये थे । सेवा करते हुये सभी, संत दर्शनों से परम सुख का अनुभव कर रहे थे ॥८॥ 
(क्रमशः)

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