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*श्री सन्त-गुण-सागरामृत श्री दादूराम कथा अतिपावन गंगा* ~
स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~
संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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*(“पञ्चविंशति तरंग” १/२)*
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*दोहा*
*मंदिर में श्री दादू वाणी की स्थापना*
आषाढ शुक्ला अष्टमी, गुरुवाणी थरपाय ।
मन्दिर में जय बोल करि, भोग प्रसाद लगाय ॥१॥
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*इन्दव छन्द*
*श्री दादूजी का सारा आभूषण पूजा में ~*
मन्दिर में गुरुवाणि विराजत,
दास गुपाल जु छाप पुजारी ।
गादि खड़ाउ सु पुस्तक वस्त्रहिं,
टोपि जु केसरु सौंज सँवारी ॥
सौंज बनाय धरी तखता परि,
ऊपर आँचल धारहिं भारी ।
प्रात: धूप, निशा करि दीपक,
यों करि पूजन साँझ सँवारी ॥२॥
विक्रम संवत १६६० आषाढ़ शुक्ला अष्टमी को जय - घोष के साथ मन्दिर में श्रीदादूवाणी की स्थापना की गई, भोग प्रसाद लगाया गया । गुरुदेव की देहस्वरूप विराजित वाणीजी की पूजा का दायित्व गोपालदासजी को सौंपा गया । सौंज(सुसज्जित पूजा स्थली) बनाकर एक तख्ते पर रखी गई । सौंज के नीचे गुरुदेव की गद्दी, खड़ाऊ(पादुका), केसर रंजित टोपी रखी गई । ऊपर सुन्दर आँचल बिछाया गया । उस पर श्रीदादूवाणी जी को सुन्दर स्वच्छ वस्त्र में लपेटकर रखा गया । प्रात: सायं धूप दीप से पूजा प्रारंभ की गई ॥१ - २॥
(क्रमशः)
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