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साभार ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*रोढू ग्राम प्रसंग*
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१३५. तर्क चेतावनी । प्रतिपाल
जात कत मद को मातो रे ।
तन धन जोबन देख गर्वानो, माया रातो रे ॥टेक॥
अपनो हि रूप नैन भर देखै, कामिनी को संग भावै रे ।
बारम्बार विषय रत मानैं, मरबो चित्त न आवै रे ॥१॥
मैं बड़ आगे और न आवे, करत केत अभिमाना रे ।
मेरी मेरी करि करि फूल्यो, माया मोह भुलानां रे ॥२॥
मैं मैं करत जन्म सब खोयो, काल सिरहाणे आयो रे ।
दादू देख मूढ़ नर प्राणी, हरि बिन जन्म गँवायो रे ॥३॥
डीडवाने से रोढू ग्राम का शारण वैश्य दादूजी को अपने ग्राम में लाया और श्रद्धा से शिष्यों सहित दादूजी की सेवा करने लगा । सब लोग सत्संग से लाभ उठाने लगे । एक दिन शारण वैश्य दादूजी के सामने तो बैठा था किन्तु उसका मन किसी धन संबन्धी विचार में लगा था । उसके मन की स्थिति जानकर दादूजी ने उसे सचेत करने को उक्त १३५ का पद बोला था । पद को सुनकर उसने अपनी भूल स्वीकार की थी । शारण शारदा माहेश्वरी थे ।
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