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*#श्रीदादूदयालवाणी०आत्मदर्शन* द्वितीय भाग : शब्दभाग(उत्तरार्ध)
राग गौड़ी १(गायन समय दिन ३ से ६)
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
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५६. प्रश्न । पंचम ताल ~
मैं नहिं जानूँ सिरजनहार,
ज्यों है त्योंहि कहो करतार ॥टेक॥
मस्तक कहाँ कहाँ कर पाइ,
अविगत नाथ कहो समझाइ ॥१॥
कहं मुख नैनाँ श्रवणां साँई,
जानराइ सब कहो गुसाँई ॥२॥
पेट पीठ कहाँ है काया,
पड़दा खोल कहो गुरु राया ॥३॥
ज्यों है त्यों कह अन्तरजामी,
दादू पूछै सतगुरु स्वामी ॥४॥
टीका ~ ब्रह्मऋषि सतगुरु कहते हैं कि हे परमेश्वर ! हम नहीं जानते कि आपका स्वरूप कैसा है ? आप ही कृपा करके अपना स्वरूप जैसा है वैसा कहो ।
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हे अविगत नाथ ! आपका मस्तक कहाँ है ? कहाँ हाथ - पैर हैं ?
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हे मन इन्द्रियों से अज्ञात स्वामी ! आप समझाकर कहो कि आपका मुख, नेत्र, श्रवण, पेट, पीठ, शरीर, ये अब हमको बताओ कहाँ हैं ।
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हे, गुरुदेव ! पड़दा खोलकर सब स्पष्ट समझाओ ।
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उत्तर की साखी ~
दादू सबै दिशा सो सारिखा, सबै दिशा मुख बैन ।
सबै दिशा श्रवणहुँ सुनै, सबै दिशा कर नैन ॥१॥
सबै दिशा पग शीश हैं, सबै दिशा मन चैन ।
सबै दिशा सन्मुख रहै, सबै दिशा अंग ऐन ॥२॥
ॐ सहस्रशीर्षा पुरुषः सहस्राक्षः सहस्रपात ।
सभूमिं सर्वतः वत्वा अत्र तिष्ठ दशांगुलम् ॥
(क्रमशः)
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