रविवार, 23 नवंबर 2014

= २०० =

#daduji
卐 सत्यराम सा 卐 
पंच पदारथ मन रतन, पवना माणिक होइ । 
आतम हीरा सुरति सौं, मनसा मोती पोइ ॥ 
अजब अनूपम हार है, सांई सरीषा सोइ । 
दादू आतम राम गल, जहाँ न देखे कोइ ॥ 
दादू पंचों संगी संग ले, आये आकासा । 
आसन अमर अलेख का, निर्गुण नित वासा ॥ 
प्राण पवन मन मगन ह्वै, संगी सदा निवासा । 
परचा परम दयालु सौं, सहजैं सुख दासा ॥ 
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साभार : Osho Prem Sandesh ~ 
बहुत संपत्तियां खोजीं, किंतु अंत में उन्हें विपत्ति पाया। फिर, स्वयं में संपत्ति के लिए खोज की। जो पाया वही परमात्मा था। तब जाना कि परमात्मा को खो देना ही विपत्ति और उसे पा लेना ही संपत्ति है।
किसी व्यक्ति ने एक बादशाह की बहुत तारीफ की। उसकी स्तुति में सुंदर गीत गाए। वह उससे कुछ पाने का आकांक्षी था। बादशाह उसकी प्रशंसाओं से हंसता रहा और फिर उसने उसे बहुत सी अशर्फियां भेंट कीं। उस व्यक्ति ने जब अशर्फियों पर निगाह डाली, तो उसकी आंखें किसी अलौकिक चमक से भर गई और उसने आकाश की ओर देखा। उन अशर्फियों पर कुछ लिखा था। उसने अशर्फियां फेंक दीं और वह नाचने लगा। उसका हाल कुछ का कुछ हो गया। उन अशर्फियों को पढ़कर उसमें न मालूम कैसी क्रांति हो गई थी। 
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बहुत वर्षो बाद किसी ने उससे पूछा कि उन अशर्फियों पर क्या लिखा था ?वह बोला,उन पर लिखा था 'परमेश्वर काफी है'। सच ही परमेश्वर काफी है। जो जानते हैं, वे सब इस सत्य की गवाही देते हैं।
मैंने क्या देखा ? जिनके पास सब कुछ है, उन्हें दरिद्र देखा और ऐसे संपत्तिशाली भी देखें, जिनके पास कि कुछ भी नहीं है। फिर, इस सूत्र के दर्शन हुए कि जिन्हें सब पाना है, उन्हें सब छोड़ देना होगा। जो सब छोड़ने का साहस करते हैं, वे स्वयं प्रभु को पाने के अधिकारी हो जाते हैं। 
(सौजन्य से : ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन)

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