शनिवार, 22 नवंबर 2014

= १९७ =


#daduji
卐 सत्यराम सा 卐 
ए ! प्रेम भक्ति बिन रह्यो न जाई, 
परगट दरसन देहु अघाई ॥टेक॥ 
तालाबेली तलफै माँही, 
तुम बिन राम जियरे जक नांही । 
निशिवासर मन रहै उदासा, 
मैं जन व्याकुल श्वासों श्वासा ॥१॥ 
एकमेक रस होइ न आवै, 
तातैं प्राण बहुत दुख पावै । 
अंग संग मिल यहु सुख दीजे, 
दादू राम रसायन पीजे ॥२॥ 
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साभार : Gyan-Sarovar(ज्ञान-सरोवर) ~ 
एक बार एक परमात्मा का खोजी उसे पाने की उसको अनुभव करने की चाह लिए निकला। ढूंढा बहुत बाहर लेकिन पा न सका, कभी मंदिर गया, कभी मस्जिद। शायद कोतुहलवश बाहर खोज रहा था। लेकिन उसे परमात्मा मिल न सका।
आखिरकार हार मान बैठा। फिर ग्रंथों को पढना आरंभ कर दिया पांडित् बनने लगा। अफ़सोस फिर भी न पा सका। लेकिन फिर एक सार पकड लिया। पूर्ण गुरु के बिना परमात्मा का अनुभव संभव नहीं। भीतर उठे इस कोतुहल को शांत करने के लिए महापुरुषों की जीवनी पढने लगा। तो जान गया कोई तो सच्चा महापुरुष इस जहां में होगा जो मुझे परमात्मा का दर्शन करवा दे।
खोज शुरू करता है। यहाँ कमाल देखो जो कभी परमात्मा का खोजी था वह गुरु खोजने निकल पड़ा। यही हुआ करता है। और सच में कोई पूर्ण महापुरुष यह जान गये थे, और वो उनसे ही जा मिला। और बोला क्या आप मुझे ईश्वर दर्शन करवा सकते हैं। मुझे ब्रह्मज्ञान प्रदान कर दीजिये। उन दिव्य महापुरुष को उसके मन की स्थिति को जानते देर न लगी।
उन्होंने कहा यहाँ तुम्हे कोई पूर्ण गुरु नहीं मिलेगा। जबकि वो स्वंम पूर्ण महापुरुष थे। बस उसकी परीक्षा ले रहे थे। उन्होंने कहा तुम खोज जारी रखो और जब तुम्हे कोई ऐसा दिव्य महापुरुष मिले जिसे देखते ही तुम्हारी आंखे नम हो जाये। जिनकी उपस्थिति तुम्हे भीतर तक जगा दे, जिनका दिव्य चेहरा तुम्हे उनका भक्त बना दे। वही तुम्हे ब्रह्मज्ञान देकर ईश्वर का अनुभव करवाएंगे, जाओ वो तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं, उन्हें ढूंढ लो। वो आगे बढ़ चला।
बहुत ढूंढा। कई शहर छान मारे। लेकिन ऐसा कोई नहीं मिला। आखिर एक बार समुद्र के किनारे आ पंहुचा। तड़प उठा। भीतर से आत्मा गुरु को पाने के लिए विव्हल हो उठी। आंसू बहने लगे। और पुकार इतनी तेज उठी कि अचानक वातावरण में दिव्य सुगंधी फ़ैल उठी। अत्यंत उर्जा मय वातावरण हो गया। और उसने एक पेड़ के पास नजर घुमाई।
देखा कि एक दिव्य महापुरुष पेड़ के नीचे बैठे हैं। इतना नूरानी चेहरा देख कर वह उनका मुरीद हो गया। उनकी क्रांतिकारी दिव्य उर्जा उसे अंदर तक जाग्रती फैला रही थी। कुछ याद आ गया। ये तो वही महापुरुष थे जो पहले उसे मिले थे। वो उनके चरणों को पकडकर रोने लगा। और उनके दर्शन करके उसे ऐसा लगा जेसे एक प्यासी नदी को सागर का संग मिल गया हो। उसने गुरु से पूछा आपको मैं कब से ढूंढ रहा था।
गुरु बोले हाँ, उस समय भी मैं तुझे मिला था लेकिन तूने मुझ मे गुरु ही नहीं देखा। गुरु को देखने के लिए साधरण आंखे नहीं, प्रेम भरी और प्यासी आँखे चाहिए। लेकिन उस समय तुझमें ईश्वर को पाने की वो प्यास वो सच्ची तड़प नही थी। उसी प्यास को जगाने के लिए हमने यह किया।
गुरु सामने मोजूद होता है। और हर किसी को गुरु मिलकर भी नहीं मिल पाता। प्यास होनी चाहिये। क्यों कि गुरु को देखने के लिए साधारण दृष्टि नहीं प्रेम भरी प्यास भरी तड़पती आंखे चाहिए।

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