रविवार, 2 नवंबर 2014

१२. चाणक को अंग ~ १४

#daduji

॥ श्री दादूदयालवे नमः॥ 
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*सवैया ग्रन्थ(सुन्दर विलास)* 
साभार ~ @महंत बजरंगदास शास्त्री जी, 
पूर्व प्राचार्य - श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व 
राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान) 
*१२. चाणक को अंग* 
*कोउक अंग बिभूति लगावत,*
*कोउक होत निराट दिगम्बर ।* 
*कोउक श्वेत कषाइक ओढ़त,* 
*कोउक काथ रंगै बहु अम्बर ॥* 
*कोउक बलकल शीश जटा नख,* 
*कोउक वौढ़त हैं जु बघम्बर ।* 
*सुन्दर एक अज्ञान गये बिनु,* 
*ये सब दीसत आहि अडम्बर ॥१४॥* 
*बाह्याडम्बर* का निषेध : संसार को दिखाने के लिये कि मैं पहुँचा हुआ सन्त महात्मा हूँ, कोई अपने शरीर पर विभूति(राख) लपेटता है, कोई पूर्णतः नग्न रहता है । 
कोई श्वेत वस्त्र धारण करता है, कोई गेरुए या काषाय वस्त्र धारण करता है । 
कोई वल्कल(वृक्ष की छाल) धारण करता है, तथा सिर पर जटा एवं हाथों में नख बढ़ा लेता है, कोई व्याघ्रचर्म धारण करता है । 
*श्री सुन्दरदास जी* कहते हैं - परन्तु एक अविद्यान्धकार के नष्ट हुए बिना उसकी धारण की हुई ये उपर्युक्त बातें आडम्बर(मिथ्या ढोंग - अभिनय) ही दिखायी देती है ॥१४॥ 
(क्रमशः)

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