#daduji
॥ श्री दादूदयालवे नमः॥
.
*सवैया ग्रन्थ(सुन्दर विलास)*
साभार ~ @महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य - श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व
राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
.
*१२. चाणक को अंग*
.
*कोउक अंग बिभूति लगावत,*
*कोउक होत निराट दिगम्बर ।*
*कोउक श्वेत कषाइक ओढ़त,*
*कोउक काथ रंगै बहु अम्बर ॥*
*कोउक बलकल शीश जटा नख,*
*कोउक वौढ़त हैं जु बघम्बर ।*
*सुन्दर एक अज्ञान गये बिनु,*
*ये सब दीसत आहि अडम्बर ॥१४॥*
*बाह्याडम्बर* का निषेध : संसार को दिखाने के लिये कि मैं पहुँचा हुआ सन्त महात्मा हूँ, कोई अपने शरीर पर विभूति(राख) लपेटता है, कोई पूर्णतः नग्न रहता है ।
कोई श्वेत वस्त्र धारण करता है, कोई गेरुए या काषाय वस्त्र धारण करता है ।
कोई वल्कल(वृक्ष की छाल) धारण करता है, तथा सिर पर जटा एवं हाथों में नख बढ़ा लेता है, कोई व्याघ्रचर्म धारण करता है ।
*श्री सुन्दरदास जी* कहते हैं - परन्तु एक अविद्यान्धकार के नष्ट हुए बिना उसकी धारण की हुई ये उपर्युक्त बातें आडम्बर(मिथ्या ढोंग - अभिनय) ही दिखायी देती है ॥१४॥
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें