रविवार, 2 नवंबर 2014

*छोटी पालड़ी/पादू प्रसंग*

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साभार ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*छोटी पालड़ी प्रसंग*
दादू भीगे प्रेम रस, मन पंचों का साथ(परिचय अंग ४)
मगन भये रस में रहे, तब सम्मुख त्रिभुवन नाथ ॥२८५॥
गूलर से दादूजी छोटी पालड़ी के कान्हरदासजी के आग्रह से छोटी पालड़ी गये थे तब कान्हरदासजी ने एक दिन दादूजी से पू़छा - प्रभु का प्रत्यक्ष दर्शन कैसे हो ? तब दादूजी ने उक्त २८५ की साखी से उत्तर दिया था । वे दादूजी के सौ शिष्यों में है ।
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*पादू प्रसंग*
१७३. निस्पृहता पंजाबी । त्रिताल
राम सुख सेवक जानै रे, दूजा दुख कर माने रे ॥टेक॥
और अग्नि की झाला, फंद रोपे हैं जम जाला ।
सम काल कठिन शर पेखें, यह सिंह रूप सब देखें ॥१॥
विष सागर लहर तरंगा, यहु ऐसा कूप भुवंगा ।
भयभीत भयानक भारी, रिपु करवत मीच विचारी ॥२॥
यहु ऐसा रूप छलावा, ठग पासीहारा आवा ।
सब ऐसा देख विचारे, ये प्राण घात बटपारे ॥३॥
ऐसा जन सेवक सोई, मन और न भावै कोई ।
हरि प्रेम मगन रंग राता, दादू राम रमै रस माता ॥४॥
पादू ग्राम में विहाणी गोत का माहेश्वरी ढकू भक्त दादूजी का परमभक्त था । पादू में ही एक दिन कु़छ जिज्ञासा लेकर हाथ जोड़े दादूजी के सामने बैठा था । उसके मन के भाव को जानकर दादूजी ने उसे उक्त १७३ पद से उपदेश दिया था ।

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