रविवार, 23 नवंबर 2014

१४. बचन बिवेक को अंग ~ ६

॥ श्री दादूदयालवे नमः॥ 
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*सवैया ग्रन्थ(सुन्दर विलास)* 
साभार ~ @महंत बजरंगदास शास्त्री जी, 
पूर्व प्राचार्य - श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व 
राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान) 
*१४. बचन बिवेक को अंग*
*काक अरु रासभ ऊलूक जब बोलत हैं,* 
*तिनके तौ बचन सुहात कहि कौंन कौं ।* 
*कोकिला ऊ सारौ पुनि सूवा जब बोलत हैं,* 
*सब कोऊ कांन दे सुनत रव रौंन कौं ॥* 
*ताहि तैं सुबचन बिवेक करि बोलियत,* 
*यौंहि आंक बांक बाकि तौरिये न पौंन कौं ।* 
*सुन्दर समुझि कै बचन कौं उचार करि,* 
*नांहि तर चुप व्है पकरि बैठी मौंन कौं ॥६॥* 
कौआ, गधा और उल्लू - बोलने को तो ये तीनों भी बोलते हैं । परन्तु इनका बोला हुआ स्वर किस को अच्छा लगता है । 
परन्तु कोयल, मैना और तोता भी बोलते हैं, उनका बोला हुआ सभी सुनने वालों को उतना प्रिय लगता है कि प्रत्येक सुनने वाला यथास्थान खड़े होकर सुनने लगता है । 
अतः प्रत्येक मनुष्य को चाहिये कि वह जो कुछ भी बोले विचारपूर्वक ही बोले; क्योंकि निरर्थक बोलकर अपने श्वासों को नष्ट करने का कोई लाभ नहीं है । 
*श्री सुन्दरदास जी* कहते हैं - इसलिये कुछ भी बोलना विचारपूर्वक ही होना चाहिये, अन्यथा मौन होकर चुप बैठे रहना ही अच्छा है ॥६॥ 
(क्रमशः) 

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