॥ श्री दादूदयालवे नमः॥
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*सवैया ग्रन्थ(सुन्दर विलास)*
साभार ~ @महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य - श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व
राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*१४. बचन बिवेक को अंग*
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*काक अरु रासभ ऊलूक जब बोलत हैं,*
*तिनके तौ बचन सुहात कहि कौंन कौं ।*
*कोकिला ऊ सारौ पुनि सूवा जब बोलत हैं,*
*सब कोऊ कांन दे सुनत रव रौंन कौं ॥*
*ताहि तैं सुबचन बिवेक करि बोलियत,*
*यौंहि आंक बांक बाकि तौरिये न पौंन कौं ।*
*सुन्दर समुझि कै बचन कौं उचार करि,*
*नांहि तर चुप व्है पकरि बैठी मौंन कौं ॥६॥*
कौआ, गधा और उल्लू - बोलने को तो ये तीनों भी बोलते हैं । परन्तु इनका बोला हुआ स्वर किस को अच्छा लगता है ।
परन्तु कोयल, मैना और तोता भी बोलते हैं, उनका बोला हुआ सभी सुनने वालों को उतना प्रिय लगता है कि प्रत्येक सुनने वाला यथास्थान खड़े होकर सुनने लगता है ।
अतः प्रत्येक मनुष्य को चाहिये कि वह जो कुछ भी बोले विचारपूर्वक ही बोले; क्योंकि निरर्थक बोलकर अपने श्वासों को नष्ट करने का कोई लाभ नहीं है ।
*श्री सुन्दरदास जी* कहते हैं - इसलिये कुछ भी बोलना विचारपूर्वक ही होना चाहिये, अन्यथा मौन होकर चुप बैठे रहना ही अच्छा है ॥६॥
(क्रमशः)
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