सोमवार, 3 नवंबर 2014

= १६८ =

#daduji
卐 सत्यराम सा 卐 
दोष अनेक कलंक सब, बहुत बुरा मुझ मांहि । 
मैं किये अपराध सब, तुम तैं छाना नांहि ॥ 
गुनहगार अपराधी तेरा, भाजि कहाँ हम जाहिं । 
दादू देख्या शोध सब, तुम बिन कहीं न समाहिं ॥ 
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दूसरे में कभी कोई दोष दिखे तो पहले यह सोचना चाहिये कि कहीं मेरे अपने मन की कलुषता ही तो दोष नहीं दिखा रही है ? ऐसा हो तो फिर यह देखे कि ‘मेरे में यह दोष कि नहीं ।’ यदि अपने में वह दोष है तो फिर दूसरे को दोषी कहने का क्या अधिकार है ! अतएव हमें दूसरे की आलोचना और निन्दा से सदैव बचना चाहिये, इसी में परम लाभ है । 
भाई हनुमान प्रसाद पोद्दार जी.......

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